सामाजिक

युवा पीढ़ी में बढ़ती हिंसक प्रवृति चिंतनीय विषय

आज की युवा पीढ़ी अपने माता-पिता के कहने में बिलकुल भी नहीं है। युवाओं में मात्र जोश है पर होश नहीं है। वह कुछ करना नहीं चाहते पर बिना परिश्रम बहुत कुछ पाने की अभिलाषा मन में पाले हुए हैं। उनके पैर जमीं पर नहीं हैं पर आसमान पाने की लालसा रखते हैं। मोबाइल युग में हिंसक मूवी देखते उनमें हिंसा की प्रवृत्ति पनपना स्वाभाविक ही है। हथियारों के दृश्य के शौकीन यह युवा पीढ़ी इनकी नकल करने की ओर अग्रसर है। छोटी-छोटी बातों पर एक-दूसरे से झगड़ा करने में तनिक भी देर नहीं लगाते। ग्रुपों में बंट कर लड़ने की टाई पाते हैं। एक-दूसरे को देख लेने की धमकी देते हैं। बालिग तो क्या नाबालिग भी अब पीछे नहीं रहे हैं। हिंसक दृश्य स्कूलों, काॅलेजों एवं अन्य संस्थाओं में प्रायः देखने को रोजाना मिल जाते हैं। सभी बेबस हैं। माता-पिता, अभिभावकों, अध्यापकों व समाज से युवा पीढ़ी किस प्रकार के संस्कार प्राप्त कर रही है ?
पंजाब राज्य के बटाला के निकट हरचोवल में हिंसा का ऐसा ही तांडव नृत्य देखने को मिला । वहां एक स्कूल में विद्यार्थियों के दो गुटों में झगड़ा हुआ। दोनों गुटों में विवाद इतना बढ़ गया कि छात्रों के एक ग्रुप ने विरोधी गुट के घर रात्रि को हथियारों से लैस होकर हमला बोल दिया और परिवार के एक सदस्य की हत्या करके दूसरे परिवारिक सदस्यों को जख्मी कर दिया। अब इस बात से सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि युवा पीढ़ी कितनी हिंसक, असहनशील  अनुशासनहीन व आक्रोशत होती चली जा रही है। हर कोई गैंगस्टर की राह पर चलने को आतुर है। ऐसे में हम किस प्रकार के समाज की सृजना करना चाहते हैं ?
समूचे प्रदेश में घटित घटनाओं से हम सब का मन विचलित होना स्वाभाविक है। इन घटनाओं पर लगाम लगाने की हर संभव कोशिश करना हम सब का नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम अपने बच्चो को सुसंस्कृत सुसंस्कार दें। इस बात का पता लगाया जाए कि हमारा युवा वर्ग भटक क्यों रहा है? युवा पीढ़ी के हिंसक होने का क्या कारण है? इस बात से कतई इन्कार नहीं किया जा सकता है कि हमारे समाज में अवश्य ही ऐसी संस्थाओं का क्षरण हुआ है जो नई युवा पीढ़ी के चरित्र निर्माण में सहायक था । इसमें कोई दो राय नहीं है कि अब अध्यापकों व छात्रों के बीच कहीं न कहीं सामंजस्य पहले जैसा नहीं रहा। दरअसल यह परस्पर सम्बन्ध तिरोहित होता नजर आया है जो विद्यार्थियों के सर्वागीण विकास में मददगार साबित होता रहा है।
यह बात भी शतप्रतिशत सही है कि आधुनिक युग में प्राचीन गुरु-शिष्य वाला पवित्र रिश्ता भी नहीं रहा है। उस परम्परा का भी पूर्णतः ह्रास हुआ जो कभी हमारे देश भारत की शिक्षा व्यवस्था की आत्मा हुआ करती थी । इसका मुख्य कारण है अध्यापकों द्वारा वेतन लेकर छात्रों को पढ़ाना । अध्यापकों में बढ़ती टयूशन की प्रवृत्ति ने इस सम्बंध में व्यापक परिवर्तन ला दिया है। अब बात आपसी लेन-देन का व्यापार बन कर रह गई है। आज का छात्र अपने अध्यापकों की बात भी कहाँ मानता है। इसीलिए अध्यापक छात्र के भटकाव पर अकुंश लगाने में असफल सिद्ध हो रहा है। जमाना बदला तो कानून भी बदला। छात्रों को अब असीमित अधिकार मिले हैं । कानून उन्हें दंड न देने की वकालत करता है। उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित नहीं किया जा सकता।
स्कूल से अनुपस्थित रहने पर भी छात्र अपना नाम पुनः दाख़िल करवाने में सफल हो जाते हैं।
अन्ततः बात आती है इंटरनेट एवं सोशल मीडिया के प्रचार-प्रसार की । इससे एक बेहद आक्रामक वर्ग पैदा हुआ है। इंटरनेट में विद्यमान वेबसाइटें हथियारों से लैस गेम्स से भरी पड़ी हैं। हमारी युवा पीढ़ी दिन-रात इन्हें देख भटकाव की राह पर है। रक्तरंजित हिंसक खेलों को खेलते वे स्वयंभू खलनायक बनते जा रहे हैं। उनके शारीरिक और मानसिक विकास में बिगाड़ आ रहा है। इससे उनके कोमल मस्तिष्क पर गहरा असर होना तो स्वाभाविक ही है। आज के माता-पिता अपने कार्य में इतने व्यस्त रहते हैं कि वे अपने बच्चों की उचित परवरिश भी नहीं कर पा रहे। बाप के लाइसेंस वाले रिवाॅल्वर व गाड़ी उनके हाथों में है।  ऐसे में हमारे देश का कल्चर भी यूरोपीय देशों जैसा बनता जा रहा है जहाँ छात्र जब चाहें शिक्षण संस्थानों में सरेआम गोलाबारी करने में तनिक भी संकोच नहीं करते। छोटी आयु वर्ग से लेकर युवा पीढ़ी अब अहंकार से इतनी भरी है कि किसी को भी जान से मारने के लिए तैयार हो जाती है। रिश्ते-नाते, परस्पर सम्बन्धों की परवाह न करते बदला लेने के लिए फौरन अपने साथियों को बिना देरी किये इकट्ठे करना अब युवा पीढ़ी का शौक बन चुका है।
दरअसल युवा पीढ़ी का उचित मार्गदर्शन नहीं हो पा रहा है। अधिकांश माता-पिता सर्विस के कारण घरों से बाहर रहते हैं। उनके बच्चों को उचित-अनुचित हर प्रकार की खुल मिल जाती है। मोबाइल युग ने छात्रों के जीवन का सत्यनाश कर दिया है। मोबाइल फोन उपयोगी-अनुपयोगी सामग्री से भरे पड़े हैं। अश्लीलता, अनचाही सामग्री पर किसी का भी कंट्रोल नहीं है। इस बात पर हमें सहमत होना पड़ेगा कि इन्हीं बातों ने हमारी संस्कृति को विकृत कर दिया है और बस इसी कारण छात्र हिंसक प्रवृति की ओर अग्रसर हो रहे हैं। उनकी सोच पहले वाली नहीं रही है। उनका जीवन आक्रामक होता जाना समूचे समाज के लिए बेहद घातक सिद्ध हो सकता है।
अतः समय रहते माता-पिता,अभिभावकों, अध्यापकों एवं समाज सेवी संस्थाओं को इस अत्यधिक चिंतनीय विषय पर विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है। इस समस्या पर अकुंश लगाने हेतु सबसे पहले इसके कारणों पर गौर करना होगा अन्यथा हमारे शिक्षा स्थल भी यूरोपीय देशों की भांति छात्रों के लिए गोलाबारी के अड्डे बन जाएंगे।

— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333