कविता

कवि की कलम

कब तक रोकोगे
कवि की कलम
तेज धार है इसकी
टूटेगी नहीं यह कभी
स्याही अभी सूखी नहीं
बताओ किस बात पर
नाराज हो तुम मुझ से
चाहते हो क्या मुझ से
झुक जाऊँ या रूक जाऊँ
लिखना छोड़कर बैठ जाऊँ
हो नहीं सकता यह मुझ से
प्रेम लो प्रेम दो मेरे दोस्त
चार दिन की है जिंदगानी
फिर खत्म हो जाएगी कहानी
पर एक कोई आएगा यहाँ
कवि तब गीत गायेगा नया
मत रोको मत टोको तुम
छोड़कर वैमनस्य द्वेष भाव
अपने अहं से बाहर आ जाग
आओ मिलकर प्रसन्नचित्त हों आज
नहीं रहेगा यह सिर पर सदा ताज
— वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन 

वीरेन्द्र शर्मा वात्स्यायन

धर्मकोट जिला (मोगा) पंजाब मो. 94172 80333