कविता

सुनहरी साड़ी में लिपटी

सुनहरी  साड़ी  में  लिपटी,

प्राची  खड़े  खड़े  मुस्काये।

देख धरा पर बिखरे मोती,

प्राची खड़े खड़े मुस्काये।।

पात पात  पर बिखरे मोती,

कलियाँ  धीरे   से  मुस्काएं।

अचानक आ  धमका माली,

गुम हो गई प्राची की लाली।।

सहस्त्र करों से समेट मोती,

अट्टहास   कर  रहा    माली।

प्राची  हो   गई  अब  उदास,

उल्टे  पांव    निज  निवास।।

कलियाँ थीं अब तक बाचाल,

अब   इकटक  देखें    माली।

माली देखें  इकटक  कलियाँ,

खुशी में फूली सारी कलियाँ।।

-अशर्फी लाल मिश्र 

अशर्फी लाल मिश्र

शिक्षाविद,कवि ,लेखक एवं ब्लॉगर

One thought on “सुनहरी साड़ी में लिपटी

  • अशर्फी लाल मिश्र

    उषाकाल का भव्य वर्णन।

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