उषाकाल

कविता

सुनहरी साड़ी में लिपटी

सुनहरी  साड़ी  में  लिपटी, प्राची  खड़े  खड़े  मुस्काये। देख धरा पर बिखरे मोती, प्राची खड़े खड़े मुस्काये।। पात पात  पर

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