गीत/नवगीत

गीत

आ गये अब सूखे- सूखे दिन।
फिर भिगोने आ गया फागुन ।
बाँच पाती गंध की डोलें भ्रमर।
नाचती हैं आज कलियां झूमकर।
मदभरा है पवन, संयम डोलता,
त्याग तरुओं ने दिए वल्कल वसन।
फिर पलाशी टहनियाँ सजने लगीं।
प्रीत की शहनाइयां बजने लगीं।
शुष्क अधरों पर धरा के धर दिया,
फिर प्रकृति ने मौसमी चुम्बन सघन।
पीत पत्ते सब विदाई ले रहे।
नये‌ पत्तों को वे आसन दे रहे।
नव कलेवर में धरा अब सज रही,
है प्रतीक्षारत सजन का आगमन।
होरियारी गोपियाँ रँगने चलीं।
गोप की अठखेलियाँ लगती भली।
अपने मोहन की प्रतीक्षा में सभी,
वीथियाँ भी सज गईं जैसे दुल्हन।
— डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ

डॉ. रश्मि कुलश्रेष्ठ 'रश्मि'

पिता का नाम-स्व.देव प्रकाश कुलश्रेष्ठ माता का नाम-श्रीमती उर्मिला देवी जन्म स्थान-फिरोजाबाद शिक्षा-विज्ञान स्नातक, परास्नातक हिंदी विद्यावाचस्पति की मानद उपाधि विद्यासागर की मानद उपाधि साहित्यिक उपलब्धियां- ख्यातिलब्ध पत्र पत्रिकाओं में समय समय पर गीत गजलों आदि का प्रकाशन। रेडियो दूरदर्शन, ईटीवी उर्दू द्वारा काव्य पाठ , राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय मंचों पर काव्य पाठ मोबाइल नं-8953853333 व्हाट्सएप नं.-9453697029