कविता

मेरे जीवन रथ का सारथी

कुछ भी नहीं समझ आता था
दुनियां के रंगों में
कौनसा रंग था जो भाएगा या सजेगा मुझ पे
नहीं अंदाज था दुनियां के राज़ का
कब कौन कैसा व्यवहार करेगा
कैसे निबटना हैं इन हजारों रंगों से
आई कई बालाएं बीन बुलाए ही
न थी हिम्मत कि उन्हें सह सकू या टाल दूं
घिरी थी उलझनों में जब
पाया मेरे करीब
उसीको जो था सारथी मेरे संसार रथ का
सभी रंगों को,मुसीबतों को, बालाओं को,उलझनों को
सहने और जुजने की
हिम्मत लिए हुए
पता न चला कब सब्र और सकून मुझे उसी से मिलने लगे
हिम्मत , हौंसला और सब्र कब साथ हो लिया
कभी सहा कभी  प्रतिकार भी किया
निकल गई हर मुसीबतों से
पार कर लिया समुंदर जिंदगी का
पर………
आज हैं विलय की घड़ी के पास
सारथी मेरे ही संसार रथ का
यही हुआ होगा अर्जुन के साथ भी
जब उसके भी सारथी का विलय पंथ दिखा होगा
मैं भी शायद उसी राह से गुजर के जान गई हूं
न हो किसी के सारथी का विलय इस तरह
छोड़ के मध्य मार्ग में
न बनाएं दिशाहीन किसी के भी जीवन  धारा को
प्रार्थना हैं यही कि
शक्ति देना ओ परम इस प्रयाण को सहने की
— जयश्री बिरमी

जयश्री बिर्मी

अहमदाबाद से, निवृत्त उच्च माध्यमिक शिक्षिका। कुछ महीनों से लेखन कार्य शुरू किया हैं।फूड एंड न्यूट्रीशन के बारे में लिखने में ज्यादा महारत है।