कविता

सूनापन

रूठ कर जब से गई हो तुम
जीवन में बीराना सा छाई है
सूना पन मेरे जीवन की
एक नई कहानी लेकर आई है

काल कोठरी सी लगती है
अपना घर का ये सूना आँगन
भूल चुकी पपिहा नीज बोली
जब से रूठा है तेरा वो दामन

अँधेरी रात में रजनी है क्यो मौन
साया वहॉ खड़ा है है वो    कौन?
चाँदनी अमावश सी लगती है
चाँद भी चुप चाप है शब्द गौण

वो रूनझुन पायल की सरगम
हँसना रूठना तेरा वो हरदम
नीला आसमान चुपचाप खड़ा है
नभ पर सन्नाटा का राज पड़ा है

कोयलिया अमवाँ पर बोले
गम का ताना बाना घोले
मन की ऑखें भी रो रही है
पश्चाताप से ना कुछ बोल रही है

कोई शिकवा ना कोई शिकायत
कोई बंदिश ना कोई बगावत
आ जाओ तुम लौटकर जानम
हाथ पकड़ लो छोड़ना ना मेरा दामन

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088