मुक्तक/दोहा

मुक्तक

बिन बच्चों के आँगन सूना लगता है,
बिन बारिश के सावन सूना लगता है।
बच्चों के हुड़दंग, रंगों से होली लगती,
बिन सजनी के फागुन सूना लगता है।
हुये कपोल लाल सदा ख़ुशियों के अवसर,
होली के अवसर गुलाल गाल पर सजता है।
तन मन सब रंग जाता प्रियतम की बातों से,
मीठे बोलों की पिचकारी से प्रेम रंग चलता है।
— अ कीर्ति वर्द्धन