कविता

प्रेम का अतिरेक

जीवन भर सालता है।
बनता प्रगति में रोड़ा,
अज्ञात भय पालता है।।
मात पिता का लाड़,
संतान के लिए बाधा।
दैहिक विकास दे पूरा,
सकल उन्नति आधा।।
बच्चा मन से, पंगु हो जाता,
रहे अधिक जब गोद में।
दुनिया के फेर, समझ न पाता,
अधिक रखो गर मोद में।।
प्रियतम प्रेम करे जो ज्यादा,
ध्यान समय का, न रह पाता।
काम ज़रूरी छूटते सारे,
लक्ष्य पानी में, है बह जाता।।
गुरू शिष्य से,यदि रखेगा,
आशा से अधिक लगाव।
सोना कुंदन बनेगा कैसे?
अग्नि से मिले न ताव!!
प्रेम करो पर उतना ही,
जीवन बगिया जो सींचे।
उद्देश्यपरक सन्मार्ग दिखाए,
गतिमान पैर न खींचे।।
— तुषार शर्मा “नादान”

तुषार शर्मा "नादान"

राजिम जिला - गरियाबंद छत्तीसगढ़ tusharsharmanadan@gmail.com