मेरा घर
एक उम्र बिताई है मैंने इस घर आँगन चौवारे में
इस घर की हर ईंट सनी विश्वास प्रेम के गारे में
तिनका-तिनका कर जोड़ी है
रिश्तों की ये बगिया मैंने
इसकी ख़ातिर ही छोड़ी है
जीवन की कुछ ख़ुशियाँ मैंने
ये देह नहीं अंतर्मन भी बसता इसके आधारों में
इस घर की हर ईंट सनी विश्वास प्रेम के गारे में
हर कोने में बसी है ख़ुशबू
मेरी महकी साँसों की
मैं ही सदा रही हूँ साक्षी
सुख -दुःख के आभासों की
मैंने पल-पल इसे सजाया रातों और उजियारे में
इस घर की हर ईंट सनी विश्वास प्रेम के गारे में
इक कदम न तुम चल पाओगे
जिस दिन छोड़ूँगी इस घर को
अपनी स्नेह सुधा से मैं
वंचित कर दूँ इस तरुवर को
रह जायेगी परछाई बस इसके हर इक गलियारे में
इस घर की हर ईंट सनी विश्वास प्रेम के गारे में॥
— अनामिका लेखिका