कविता

सादगी

बहुत भाती मुझको यह निशा
 करता  प्रतीक्षा कब होगी उषा
उनींदी सी जब तू खोलें अपना खिड़की
सांसे हमारी वही जा ठहरती
 बिखरे गेसू बोझिल नैना
लेती  अंगड़ाई उसका क्या कहना
देखें मेरी नैना तुझे कई बार
झंकृत होती मन वीणा के तार
सादगी से भरा तेरा ये रूप
लगती हो मीठी  सर्दी की धूप
सुनो ना तुम ऐसे ही रहना
बस इतना ही मानो मेरा कहना
नहीं देखता कोई आडंबर
चाहूं तुझे मैं इस कदर
खुद से ही मैं हो जाता बेखबर
कुछ तो तुझ में है कोई बात
तुझको ही चाहे यह दिन और रात
हंस पढ़ता हूं मैं भी बात बेबात
कह दूंगा अब मैं अपने जज्बात
फिर खोलना तुम हमारे घर की खिड़की
सुन ले प्रभु मेरे बातें यह मन की|
— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com