कविता

लेखनी मेरा जुनून

जब से लेखिका बनने का भूत  अपने सिर चढ़ा है
अपना तो घर संसार पूरी तरह से हिल गया है
कहाँ तो सब  थे हमारी पाक कला के दीवाने
 रसोई मे अब रोज होने लगा गड़बड़ घोटाले
चाय के पतीले रोज रोज  हैं जलने लगे
 क्योंकि हम कविता के चक्कर मे सब हैं भूलने लगे
दूध उबल उबल कर बहने लगा है
दाल में भी कभी पानी ज्यादा
तो कभी नमक कम होने लगा है
रोटियां जल जल कर अपनी व्यथा हैं सुनाती
और हमे हर बात में कहानी है नज़र आती
आलू बिना डाले ही  कूकर की सिटी बजने लगी है
मशीन में कपड़े बिना सर्फ  ही धुल जाते हैं
पतिदेव जब भी हमारे नज़दीक आते हैं
हम उनको भी एक अदद कविता सुना डालते हैं
कहीं  आने जाने को भी अब मन नही है करता..
क्या करें कविता कहानियों में ही अब मन है रमता।
सपने में भी कभी कविता तो कभी कहानी ही लिखते रहते
लगता है कहानियों के पात्र मेरे आसपास ही घूमते रहते
पर मेरे अकेलेपन का साथी भी तो मिल गया है..
जब से कलम के रूप में एक सच्चा दोस्त मिल गया है।
— रीटा मक्कड़