कहानी

कहानी – झूठ का पर्याय

आज कुरियर से गौतम की शादी का कार्ड आया।मेरा दिल धक से रह गया। कार्ड पर बहुत ही सुंदर अक्षरों में लिखा था गौतम संग मीरा।
              गौतम का नाम पढ़ते ही मैं अतित में चली गयी। गौतम हमारे घर पर किराये से रहता था।पापा की एक ही शर्त रहती कि किराये पर उन्हें शादीशुदा लोगों को ही रखना है।एक दिन मकान किराये पर लेने गौतम आया।पापा की बात सुनकर वह बोला “हां अंकल,, मेरी शादी हो गई है वो अब तक कोई अच्छा सा मकान नहीं मिल रहा था , अच्छा मकान मिले तो पत्नी  और मां को भी लेकर आऊं ऐसे सोच कर नहीं लाया हूं,अब आपका घर मिले तो अगले महीने मां और पत्नी दोनों को ही लेकर आऊंगा।”पापा भी मान गये।गौतम अपना सामान लेकर आ गया। बहुत सारी पुस्तकें थीं उसके सामान में।मां ने कहा जा उसे चाय देकर आना बेचारा अभी अभी आया है थका होगा।मैं उसे चाय देने गयी। बड़े सुंदर अंदाज में उसने मेरा स्वागत किया और मेरा परिचय,मेरी पढ़ाई,शौक के बारे में पूछा पता नहीं क्यों पहली मुलाक़ात में ही वह मुझे अच्छा लगा।बड़ा ही आकर्षक व्यक्तित्व था उसका।
             धीरे धीरे हम  रोज मिलने लगे,मां अक्सर उसके लिए कभी कभी नाश्ता  सब्जी वगैरह
 भिजवा देती,मैं सामान रख झट आने को पलटती तो वह कहता बैठो ना, कुछ बातें करेंगे,मैं भी मना नहीं कर पाती और बैठ जाती और हम दोनों के बीच पढ़ाई,खेल राजनीति,प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे विषयों पर ही बातचीत होती।वह एक छोटी सी नौकरी के साथ आई ए एस की तैयारी कर रहा था।तो वह ऐसी और भी दूसरी कई
 परीक्षाओं के बारे में बताता और मैं मंत्री मुग्ध सी सुनती रहती।एक दिन उसने मुझे से कहा-” तुम भी तैयारी शुरु कर दो आई ए एस की मुझे भी साथ मिल जायेगा दोनों कलेक्टर बन जायेंगे”।
              मैंने भी कह दिया अपनी पत्नी को बुला लो दोनों पढ़ो बनो कलेक्टर मुझे क्या।तो उसने बड़े ही प्यार भरे अंदाज में कहा क्यो,,, तुम नहीं बनोगी?मैं पूछा ,,,क्या? तो वह बोला “कलेक्टर और पत्नी दोनों”। मुझे बड़ा गुस्सा आया मैं गुस्से से फूट पड़ती इससे पहले ही वह मुझे शांत रहने का इशारा किया और बोला “देखो वीनू ,मेरी शादी नहीं हुई है  क्या करता मुझे कहीं ऐसा घर ही नहीं मिल रहा था जहां मैं शांति से पढ़ाई कर सकूं और आई ए एस की तैयारी भी कर सकूं बस इसलिए झूठ बोलना पड़ा। मैंने भी भड़क कर ज़वाब दिया_” अच्छा तभी आप बहाने बनाते रहते हैं , जब मां पूछती हैं कि बहू कब आयेगी?तो कोई ना कोई कारण बता देते हैं आप पर मैं कैसे मानूं कि आपकी शादी नहीं हुई हैं।आप पुरुषों को ऐसे काम करना खूब आता हैं आप लोग धोखा देने में माहिर होते हैं जनाब, मुझे सब पता है मुझे अब कुछ नहीं सुनना है” कह  कर  मैं पैर पटकती अपने घर आ गयी।और उस  दिन के बाद से उखड़ी उखड़ी सी रहने लगी तो एक दिन मां ने पूछा भी
आजकल तुझे क्या हो गया है वीनू “खोई खोई सी क्यो रहती हो” पर मैं कैसे कहती अपने मन की बात,फिर मैंने अपनी एक सहेली से बात को घूमा फिरा कर पूछा तो वो बोली “नहीं रे आजकल किसी का कोई भरोसा नहीं,,, ये लड़के लोग ना बहुत झूठ बोलते हैं,, पत्नी बेचारी गांव में घर वालों के साथ पीसती रहती और ये लोग शहर में मजे करते हैं,ये लोग शहर काम के बहाने से आते हैं,और बोली साली लड़कियों को बहला लेते हैं”
 मन किया तुरंत पापा को बता कर उसे निकाल बाहर करुं पर ना जाने क्यों उसके आई ए एस बनने के सपने ने मुझे रोक दिया।
       उस दिन के बाद से मैंने उससे बातें करना ही छोड़ दिया।कई बार उसने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की,पर पता नहीं क्यों मेरा दो मन मानने की तैयारी नहीं था कि वह शादीशुदा नहीं है,मन ही मन सोचती कि वाकई इंसान के कई चेहरे होते हैं।फिर एक दिन अचानक उसने सामान बांधना शुरु कर दिया मैं छत पर कपड़े सुखाने जा रही थी तो मुझे रोककर बोला “जा रहा हूं यहां से ,, तुम्हारी नफरत का सामना रोज नहीं कर सकता पर तुमसे बहुत प्यार करता हूं,,।जाने से पहले अपने झूठे बारे में अंकल जी से बताकर जाऊंगा”।तब पता नहीं फिर मुझे ना जाने क्या  हो गया मैं उसकी आंखों में देखते ही खो सी
 गई और सम्मोहित सी
 मैंने उसके मुंह पर हाथ रख दिया और कहा नहीं,,, आप ऐसा कभी मत करना आपकी जो छवि है उनकी नजरों में वह खराब हो जायेगी,,और मैं नहीं चाहती कि पापा आपको झूठा कहें।
तो उसने कहा “तो तुम मान जाओ ना,,मेरी शादी नहीं हुई है”
मैं अंकल से सब कह दूंगा और वो जो कहें सब सुन भी लूंगा। मैंने भी कहा” पर शादी जैसे विषय पर इंसान एक बार ही किसी से बात करता हैऔर ये कोई मजाक का विषय नहीं विश्वास पर टिकी बात होती है।और आप अपनी बात उन्हें बता भी देंगें तो क्या होगा पता भी है आपको
उसने पूछा” क्या होगा?” मैंने कहा आपके बाद जो भी किरायेदार आयेगा और कहेगा कि मैं शादीशुदा हूं तो पापा कहेंगे “कहीं ये भी उस गौतम की तरह झूठ तो नहीं बोल रहा है हर बार आपका नाम आयेगा
आप उनके लिए झूठ के पर्याय बन जायेंगे जो बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा और मेरे साथ साथ उसकी आंखें भी छलक गयी
 थी,फिर मैंने का था
“आपके शादीशुदा होने कि बात जानकर मैं आपसे प्रेम नहीं कर पायी पर आकर्षित जरुर हुई।मैं आपकी पत्नी के इंतजार मे रहती कि वो कब आयेंगी पर अब कुछ भी नहीं हो सकता मैं मान भी जाऊं तो क्या होगा मां पापा के सामने आपकी ईमानदारी का सवाल है और पापा तो यही सोचेंगे कि मेरी बेटी कैसे इसके झांसे में आ गयी। तब उसने कहा था,,,” नहीं वीनू ये तुम्हारा प्रेम ही है जो तुमने मेरे लिए इतने आगे की सोची।मैं हमेशा तुम्हें अपनी दिल में रखूंगा। मैंने भी सिर झुकाकर कहा था-“पर अब कुछ नही हो सकता,आप कितनी सफाई देंगे फिर भी एक दाग आप पर लगा ही रहेगा,मन के कोने में चाहत कि हल्की सुगबुगाहट तो हो रही थी लेकिन अब आगे कोई रास्ता नही था।गौतम पापा से ये कहकर चला गया कि उसका तबादला दूसरे शहर हो गया है। जाते समय मैं उसकी नज़रों का सामना नहीं कर पाउंगी यही सोचकर अपने कमरे में आ गयी थी ।मैं अतित से लौट आयी  तो देखा लिफाफे में एक खत भी था जिस पर लिखा था “”मैं डिप्टी कलेक्टर के लिए चयनित हो गया हूं. वीनू,, तुम हमेशा खुश रहना काश तुम मेरी बात मान लेती तो आज मीरा की जगह तुम्हारा नाम होता और मैं तुम्हें कार्ड इसलिए भेज रहा हूं कि तुम्हें विश्वास हो जाय कि मैं शादीशुदा नहीं था।” तभी मां कमरे में आ गयी मैंने झट से कार्ड छुपा लिया और सोचा कि चलो ये भी अच्छा हुआ कि शादी का कार्ड किसी और के हाथ नहीं लगा।
— अमृता राजेंद्र प्रसाद

अमृता जोशी

जगदलपुर. छत्तीसगढ़