शिशुगीत

छतरी

पापा लाए छतरी प्यारी,
लेके उसे मैं इतराऊं,
गुड्डू-चुन्नू देखना चाहें,
तो मैं झूमूं-इठलाऊं.
रिमझिम-रिमझिम बूंदें बरसें,
छतरी मुझे बचाए,
आग उगलते सूरज से भी,
छतरी मुझे बचाए.
फैशन का शौकीन हो कोई,
छतरी उसे नचाए,
छतरी बड़ी लेकर दादा जी,
छड़ी उसे बनाएं.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244