गीतिका/ग़ज़ल

फैसला मुश्किल था

फैसला थोड़ा मुश्किल था
लेकिन करना जरूरी था।
हालात के आगे मेरा
झुकना मुमकिन न था।
मझधार में तुम तो साथ छोड़ गए
लेकिन मेरा उभरना जरूरी था।
माना सिमटते गए सारे रास्ते
लेकिन उन रास्तों पर चलना जरूरी था।
बिस्तर की सिलवटों में भी
रात का यूं ही गुजरना जरूरी था।
आंख और नींद के दरम्यान थे फासले बहुत
लेकिन मेरा सोना जरूरी था।
चाहे खत्म हो गई सारी उम्मीदें
दिल का हौसला रखना जरूरी था।
नामुमकिन से हालात में भी
जिंदगी का बचना जरूरी था।
—  विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P