ब्लॉग/परिचर्चाभाषा-साहित्य

‘मैगी केस’

केस तो आपने बहुत-से सुने होंगे, पर ‘मैगी केस’ शायद ही सुना हो! जी हां यह ‘मैगी केस’ बड़ा खतरनाक निकला.

अब मैगी तो बच्चों को बहुत पसंद है, वे हर समय मैगी की रट ही लगाए रखते हैं, लेकिन दो-तीन बार खाकर वे बोर भी हो जाते हैं. फिर उन्हें पिज्जा-बर्गर यानि इंस्टेंट फुड ही चाहिए होता है, पर बारी-बारी से बदल-बदल कर.

बात तो सही है भई! आपने बुनियाद सीरियल में तो देखा ही होगा, कि किसी के घर पहली बार जाने पर आलोकनाथ जी को एक बार तोशे खिलाए गए. पसंद आने पर या महज औपचारिकता वश उन्होंने तारीफ क्या कर दी, उन्हें रोज तोशे ही खिलाए गए. एक दिन उन्हें अपनी फरियाद सुनानी ही पड़ गई- “मैंने तोशों की तारीफ क्या कर दी, आप तो छः महीने से तोशे ही खिलाए जा रही हैं!”
सुनने वाले की भावभंगिमा कैसी हो गई होगी, यह तो सर्वविदित है.

अब देखिए न! हमारा छोटा-सा दोहता हमारे घर रहने आया. उसकी मम्मी तो सुबह-सुबह ऑफिस चली गई और हमें बताकर गई कि नाश्ते में वह कस्टर्ड खाता है. हम उसे गोदी में लेकर गए और कस्टर्ड का पैकेट ले आए. हमें स्ट्राबेरी फ्लेवर पसंद था, सो हम स्ट्राबेरी कस्टर्ड ही लाए थे. बच्चे ने बड़े प्यार से कस्टर्ड खाया, हम तृप्त हो गए.
अब तो हमें उसका दिन भर का मीनू पता चल गया था. दूसरे दिन बड़े चाव से हमने फिर कस्टर्ड बनाया और उसे खिलाने लगे. पर यह क्या! कोई माने-न-माने, बच्चे ने मुंह बिचका लिया और किसी तरह एक बाइट भी खाने को तैयार नहीं हुआ. हमने बिटिया को फोन लगाया.
बिटिया ने पूछा- “मम्मी, आपने कौन सा कस्टर्ड बनाया?”
“स्ट्राबेरी.” हमारा जवाब था.
“सॉरी मम्मी, मैं आपको बताना भूल गई, कि उसे अलग-अलग रंग के कस्टर्ड ही चाहिए होते हैं. प्लीज आप 6 फ्लेवर वाला पैकेट ले आइए और कोई दूसरे रंग वाला कस्टर्ड बनाकर खिलाइए.”
हम तो सचमुच बहुत हैरान हो गए! डेढ़ साल का बच्चा इतना सेंसिटिव! क्यों न हो भाई! कम्प्यूटर युग का बच्चा जो ठहरा!

बात ‘मैगी केस’ की हो रही थी, हम भूले नहीं हैं, पर पहले बात तोरई की सब्जी की! जी हां, वही तोरई की सब्जी, जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक मानी जाती है! हुआ यों कि एक भलेमानस को पत्नी ने लंच टाइम में लंच खाने को कहा. “आज सब्जी क्या बनी है?” उन्होंने प्रश्न किया.
“तोरई की सब्जी.” जवाब मिला.
“आज मैं लंच अपने दोस्त के घर करूंगा.” और वे निकल लिए.
वहां भी लंच टाइम था, सो लंच खाने को कहा गया. सब्जी के बारे में पूछा, जवाब वही मिला- “तोरई की सब्जी.”
“मेरा पेट भरा हुआ है.” कहकर वे वहां से भी निकल लिए. उस दिन लंच में उनको तोरई की सब्जी ही जो मिलनी थी!

यह तो बात हुई तोरई की सब्जी की, जो सेहत के लिए मुफ़ीद है. अब बात आती है जलेबी-समोसे की, जो स्वाद के लिए तो ठीक हैं, लेकिन जरूरत से ज्यादा खाने से हानिकारक तो होते ही हैं बेस्वादी भी!
हुआ यों कि एक महिला (महिला इसलिए कि, वह बेटी-बुआ-आंटी-मौसी सब कुछ थीं) कई बरसों बाद दुबई से देहरादून आई थीं. अब उनसे मुलाकात भले ही न हुई हो, पर उनकी पसंद को तो नहीं भूला जा सकता न! वे जहां गईं, जलेबी-समोसे हाजिर थे. इतने प्यार से परोसे गए जलेबी-समोसे के लिए इनकार करना भी तो नहीं सुहाता न! आगे जो हुआ होगा, आप समझ ही गए होंगे.

घर जैसे खाने की बात कैसे भूली जा सकती है! अक्सर घर का खाना यानि घर की मुर्गी दाल बराबर. एक सज्जन को पत्नी ने खाना खाने के लिए कहा, “आज मैं बाहर खाना खाऊंगा.” कहकर वे निकल लिए. आसपास में जितने भी होटल थे, उन पर लिखा हुआ था, “यहां घर जैसा खाना मिलता है.” वो सज्जन “घर जैसा खाना ही खाना है, तो घर जाकर ही क्यों न खाऊं?” सोचकर वे किसी होटल में गए ही नहीं. घर जाकर खाना खाया, उस दिन के बाद उनको “घर जैसा खाना” नहीं “घर का खाना” ही अच्छा लगने लगा.

अब बात करते हैं- ‘मैगी केस’ की. मैगी यानि वही इंस्टेंट नूडल्स! मैसूर के एक पति ने पत्नी से इसलिए तलाक ले लिया, क्योंकि उसकी पत्नी सिर्फ और सिर्फ मैगी ही बनाती थी.
जी हां, सही सुना आपने मैगी के कारण पति-पत्नी तलाक हो गया. कोर्ट में पति ने कहा कि उसकी वाइफ को खाने में सिवाय मैगी के कुछ नहीं बनाना आता. वो ब्रेकफास्ट में भी मैगी बनाती है, लंच में भी मैगी बनाती है और रात को डिनर में भी मैगी ही बनाती है. यहां तक कि वो राशन में भी इंस्टेंट नूडल्स ही खरीदकर लाती है.
कोर्ट ने अनेक विकल्प बताकर कपल को रियूनाइट करने की जी भरसक कोशिश की, लेकिन मैगी से परेशान पति तलाक लेने को ही आमादा थे, सो दोनों का आपसी सहमति से तलाक हो गया.

सभी पाठकों से यही गुजारिश है, कि ऐसी स्थितियां आने ही न दी जाएं, कि तलाक की नौबत आ जाए. आपको पता है न, कि नौबत बजती है, तो आवाज दूर-दूर तलक जाती है.
अपना ख्याल रखिएगा और “अति सर्वत्र वर्जयेत” को भी मत भूलिएगा.
मिलते हैं फिर किसी अन्य केस के साथ!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244