कविता

पथ शाँतिमय हो

जीवन आसान हो जाएगा
यदि हमारे वैचारिक, व्यवहारिक
सैद्धांतिक या आपसी मतभेद
मनभेद की शक्ल न लें,
हमारे विरोध के स्वर
अलोकतांत्रिक न बनें
हिंसात्मक प्रवृत्ति न अख्तियार कर लें।
समस्या कहां नहीं है?
किसके जीवन में नहीं है?
हम समस्या का समाधान चाहते हैं
या खुद के साथ साथ
राष्ट्र, समाज या आपसी संबंधों में
जहर, कटुता बोना चाहते हैं,
अपने साथ साथ राष्ट्र को भी
क्षति पहुँचाना चाहते हैं,
हिंसा का तांडव और क्षति को
हथियार बनाना चाहते हैं,
यदि ऐसा सोचते या करते हैं,
तो हम बड़ी भूल कर रहे हैं
अपने लिए ही शूल पैदा कर रहे हैं।
बस थोड़े संयम, सूझबूझ के साथ
अपने शांत दिमाग से सोचने की जरूरत है
क्या अशांति, हिंसा के पथ पर चलकर
हम अपनी समस्या का हल पायेंगे?
पायेंगे भी तो जो हम खोकर पायेंगे
उसकी भरपाई भला कैसे कर पायेंगे?
अपना, परिवार,समाज या राष्ट्र का नुक़सान कर
यदि हम अपनी जिद पूरी कर भी लें
तो क्या वास्तव में सूकून की साँस ले पायेंगे?
अच्छा होगा हम शांति पथ पर चलें
सबके हित के साथ ही अपने हित का सोचें
अपनी जिम्मेदारियों को समझें
और हम सब यह संकल्प करें
कि पथ कोई भी हो हमारा
परंतु वो पथ शांतिमय हो
हर किसी के हितार्थ हो
मानवीय मूल्यों से भरा पथ हो।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921