कविता

बदला बदला चाँद

क्यूँ बदला बदला है चाँद
क्यूं गुमसुम है आज की शाम
हवा भी चुपचाप बैठ रही है
कोई गहरी बात तैर रही है

बदरा भी क्यूँ चुपके से आया
तारों को  चादर में छुपाया
चातक लीन बैठा डाली पे
देख रही स्वाती की राहें

पत्तों की आहट चौंकाया
पह़ाडों को क्यूं पास बुलाया
गीत गम की जुवां पे है आई
अंधेरी रात अब शरमाई

आओ कुछ पल ख्वाबों में खो जायें
एक दुजै के बीच बाँहों में समायें
प्यार को तुम पर हम लुटायें
चलो सागर की ऑचल में घूम आयें

चंचल आँखों में है तेरा प्यार
कर लेना है बैठ कर इकरार
कुछ ना कहेगा यह संसार
हाँ हमको तुमसे है   प्यार

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088