कविता

कविता

पहले घर के बड़े बूढ़ों को, घर से बाहर भगाना है,
बहुओं की आज़ादी का, बेटों को जश्न मनाना है।
कुछ को वृद्धाश्रम भेजो, या सड़कों पर माँगे भीख,
कुछ घर में रह जायें उनको, घर पीछे खिसकाना है।
आज़ादी हो जीने की, बिन रोके टोके घूमने की,
संस्कारों से मुक्ति हो, उन्मुक्त जीवन अपनाना है।
नहीं चाहिए सीख हमें, नैतिकता सिखलाती हो,
नियम संयम अनुभव छोड़, नव सोच दिखाना है।
धर्म सनातन ने सिखलाया, मान बुजुर्गों का करना,
अनुभवों का लाभ उठा, जीवन सफल बनाना है।
युवा विचारों को प्रश्रय, पुरातन का भी मान रहे,
अंध विचारों को तज, सनातन का सार बताना है।
आज कर रहे बहुत समर्थन, बुजुर्गों को बाहर करो,
कल अपना नम्बर आयेगा, तब सबको पछताना है।
— अ कीर्ति वर्द्धन