कविता

सुनहरी शाम

जिसका था मुझको बरसों से इंतजार
वो सुनहरी शाम आखिर आ ही गयी
जो सपने मैने बर्षो से देखे थे
आज वो मेरे सामने आ गया
जिसका नाम लेकर मैं  सुबह उठती
शाम को जुबाँ पर उसका नाम होता
आज मेरे सामने आकर उसने अपना दीदार दिया
आज मैने  शाम को सुनहरी शाम नाम दिया
उसके साथ मैं नए सपने सजाऊँगी
मेरे सपने के राजकुमार को अपना बनाऊँगी
उसने भर दिया मांग में सिंदूर
बना लिया जीवन भर के लिए अपना
ओढ़ा दी प्यार की लाल चुनरी
बना लिया मुझे अपना सदा के लिए
मेरा जो जीवन नीरस भरा था
आज महक उठा बगिया में फूलों की तरह
मैं सदा उसके साथ सुनहरी शाम को साथ रहूँ
इतना आशीष देना प्रभु हमें
साथ जीवन भर हमारा बना रहें
— पूनम गुप्ता

पूनम गुप्ता

मेरी तीन कविताये बुक में प्रकाशित हो चुकी है भोपाल मध्यप्रदेश