लघुकथा

भरोसा है तो रिश्ता है

सकुचाहट मगर विश्वास के साथ राव ने फैसला किया और चल पड़ा, उस रिश्ते को मजबूत करने,जो आभासी दुनिया के माध्यम से जुड़ा था।
रिया जिसे वो दीदी कहता था उससे अपनी कलाई पर राखी बँधवाने। उसे पता था कि रिया का भाई थोड़े दिन पहले दुर्घटना का शिकार हो दुनिया छोड़ गया।
राव, रिया की भावनाओं को वास्तविक रिश्तों में बांधने का फैसला कर सुबह सुबह ही निकल पड़ा। चार घंटे की मोटरसाइकिल यात्रा के बाद वो रिया के घर के दरवाजे पर खड़ा था।
दरवाजा खटखटाया, दरवाजा रिया ने ही खोला। उसे देख लो चौंक गई, अरे तू यहाँ।
राव ने झुककर उसके पैर छुए तो उसने उसे उठाकर गले लगा।
दोनों अंदर गए, तो रिया ने पूछा कैसे आया है?
मोटरसाइकिल से। राव ने जबाव
रिया भड़क गई। इतनी दूर मोटरसाइकिल से आने की क्या जरूरत थी?
आज राखी है न।तो जल्दी से जल्दी आपके पास पहुंचने का लोभ था बस चल पड़ा।
मगर मुझे तो कुछ बताया नहीं?
इसमें बताना क्या था, एक भाई रहा नहीं तो दूसरा भाई तो है न दीदी। फिर आपको तो पता ही है कि मेरे लिए ये अवसर पहली बार आया है। हां आपको दिक्कत हो तो कोई बात नहीं, मैं वापस चला जाता हूँ। राव के स्वर में निराशा थी।
पागल हो गया है क्या? ऐसा कैसे हो सकता है कि मेरा भाई सूनी कलाई के साथ वापस हो जायेगा। मैं खुद तुझसे कहना चाहती थी पर संकोचवश नहीं कह पाई। मगर तूने मेरी भावना को महसूस कर लिया, ये बहुत बड़ी बात है।
मेरी दीदी हो, इसमें संकोच कैसा? आपका अधिकार है।
हां रे! ऐसा लगता है कि तू समझदार तो है ही, बहुत बड़ा भी हो गया। रिया राव से लिपटकर रो पड़ी
क्या दीदी? इतनी बड़ी होकर रोती हो।भाई इतनी दूर से आया है ये भी नहीं सोच रही है।
रिया ने झट से अपने आँसू पोंछे और राखी बाँधने की तैयारियों में जुट गई। क्योंकि आज उसके भरोसे का रिश्ता और मजबूत जो होने जा रहा है।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

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