कविता

ममता का रक्षाबंधन

 

आँखें नम हैं

मन में उल्लास भी,

महज कपोल कल्पना सी लगती है,

विश्वास अविश्वास की तलैया में

हिलोरें भरती मेरी परिकल्पना को

तूने आगे बढ़कर साकार कर दिया

अपने नेह बंधन में बाँध मुझे

तूने बहुत बड़ा काम ही नहीं

सारा जग जैसे जीत लिया

हमारे रिश्तों को नया आयाम दे दिया।

ममता तेरी ममता के आगे तो

तेरे भाई शीश सदा झुकाता ही रहा है

आज तेरा कद आसमान सा ऊँचा हो गया है।

तू छोटी सी बड़ी प्यारी, दुलारी है

तू कल भी लाड़ली थी मेरी

अब तो और भी लाड़ली हो गई है।

तेरे सद्भावों पर गर्व हो रहा है,

तेरा ये भाई भी खुशी से उड़ रहा है,

तेरा मान न पहले कम था

न आज ही कम है, न कभी कम होगा

जैसे भी हो सकेगा, होता रहेगा

रिश्तों का ये नेह बंधन

कभी कमजोर न होने पायेगा

रिश्तों का फ़र्ज़ तेरा ये भाई निभायेगा।

बस ख्वाहिश इतनी सी और बढ़ गई

मेरे सिर पर तेरा हाथ हो

और आशीष की उम्मीद बढ़ गई।

पर अहसास मुझे भी है

कि मेरी जिम्मेदारियां बढ़ गई,

हम कल भी बहन भाई के रिश्ते में बँधे थे

और आज भी तो हैं ही

इसमें नया क्या हो गया?

बस इतना कि हमारे रिश्तों पर

तेरी राखी ने कब्जा जमा और मजबूत कर दिया।

पर एक बात तो कहूंगा ही

अधिकार जताने और लड़ने झगड़ने के

तेरे जलवों में थोड़ी और वृद्धि हो गई

रिश्तों की गाँठ और मजबूत हो गई,

नेह बंधन के सहारे मेरी प्यारी बहना

तू सचमुच बाजी मारी ले गई,

राखी की डोर से हमारे संग अपने रिश्ते को

राखी बंधन में बाँध और मजबूत बना गई।

खुश हाल रहो मेरी बहना

ये आशीर्वाद हमारा है,

ममता तेरी ममता का भाव बड़ा ही प्यारा है,

कोई माने या न माने पर

ये बड़ा सौभाग्य हमारा है,

तू मेरी लाड़ली दुलारी बहना

तुझको ये भाई प्यारा है।

ऐसे लगता है तुझसे मेरा

पूर्वजन्म का रिश्ता नाता है,

जो भी है मेरी लाडो

मुझको नहीं उलझना है

बस तेरी ममता के आगे

सुधीर शीश झुकाता है ।

 

 

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921