कविता

हिंदी हैं,हम वतन हैं

हम स्वदेशी है।
हम हिंदुस्तानी हैं।
हम ही भारतीय हैं।
हम ही सच्चे हिन्दू हैं।
हमारे रग–रग में हिंदी है।
क्योंकि यही मस्तक की बिंदी है।

हम हिंदी बोलेंगे।
हम हिंदी ही अपनाएंगे।
हम हिंदी का सम्मान करेंगे।
हम हिंदी पर अभिमान करेंगे।
हम हिंदी का प्रचार–प्रसार करेंगे।
हम हिंदी को जग में पहचान कराएंगे।

हम सच्चे हिन्दू हैं।
इसी हिंदी से हम हिंदू हैं।
इसी हिंदी से ही पहचान बनी है।
यही हिंदी हमारी अपनी मातृ भाषा है।
यही हमारे भारत की गौरव राष्ट्र भाषा है।
हिंदी हैं हम , वतन हैं ,हिंदुस्तान  हमारा  है।

हिंदी हमारी भाषा है।
हिदी हमारी अभिव्यक्ति है।
हिंदी में ही सद्भावना की शक्ति है।
मेरी हिंदी बड़ी मर्यादित व संस्कारित है।
हिंदी मेरी  देव मनुज की सुमधुर  वाणी है।
यही संत कबीर तुलसी मीरा की पदावली है

— अशोक  पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578