कविता

मन मीत

कौन अपना कौन पराया
कौन अपना मीत है,
दुविधा में है आज का मानव
किसकी किससे प्रीति है।
रिश्ते नाते बेवजह सब
जो न समझे मेरे मन को,
कैसे उसको मीत कहूं
जो शूल चुभाता है दिल को।
मीत उसे ही कह सकता हूं
जो मुझसे अपनी प्रीति निभाये,
बिना कहे मेरे मन को पढ़ ले
केवल वो ही मन मीत मेरा,
सुख दुख में जो साथ निभाए
वो ही सच्चा मन मीत कहाए।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921