कविता

मेरी वेदना

 

अपनी वेदना का हाल मैं

भला कैसे कहूँ?

किससे कहूँ और क्यों कहूँ?

जिसनें ये वेदना दी है

जब उसे भी पता ही है।

पर दोष उसका भी तो नहीं

उसकी भी अपनी विवशता है।

मुझे पता है उसके अंतर्मन की पीड़ा का

जो झकझोरती ही नहीं

बेचैन भी करती हैं मुझे,

उसे दोष देने से रोकती हैं मुझे।

मेरी वेदना पर भारी है उसकी वेदना

जो घुटने को उसे विवश कर रही है

पीड़ा सहते हुए न चाहकर भी

लगातार मजबूर कर रहा है उसे।

सच कहूँ तो मेरी वेदना

उसकी वेदना के आगे कुछ भी नहीं है,

इसलिए मैं सब सह रहा हूँ,

अपनी वेदना को ताक पर रख

उसकी वेदना को महसूस कर

बस! आँसू बहा रहा हूँ,

बेबसी भरी वेदना को सह रहा हूँ,

वेदना को अंतर्मन से पढ़ रहा हूँ,

अपनी वेदना के मौन स्वर

न चाहकर भी सुन रहा हूँ।

 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921