गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आप तो रिश्तों में भी चालाकियाँ करते रहे
हम ज़माने के लिए नादानियाँ करते रहे

हम बदल जाते बदल जाती फिज़ा इस दौर की
सब बदल जाए यही गुस्ताखियाँ करते रहे

जिन जवानों के भरोसे देश की तक़दीर है
वो नशे में चूर हों शैतानियाँ करते रहे

राहे उल्फत थी कठिन दुश्मन ज़माना था मगर
उम्र भर दिल की सुनी मनमानियाँ करते रहे

अब ये जाना झूठ का चेहरा चमकता है यहाँ
हम हैं कि सच कहने की गुस्ताखियाँ करते रहे

— डॉ आरती कुमारी

डॉ. आरती कुमारी

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