कविता

जिंदगी एक जंग है

जिंदगी जीना कोई खेल नहीं
कदम कदम पर जंग है
कभी अपने से
कभी अपनों से
सुबह की शाम से
शाम की सुबह से
निरंतर एक जंग है
जिंदगी जीना कोई खेल नहीं
सत्य की असत्य से
असत्य की सत्य से
मान की अपमान से
अपमान की मान से
कभी जमीर की
कभी सिद्धांतों की
आपसी जंग है
जिंदगी हर कदम एक जंग है
इस जिंदगी की जंग में
हार और जीत दाव पर है लगी
देखना यह है
कौन  हारता
कौन जीतता 
जिंदगी की यह जंग

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020