गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

समय के साथ चलते तुम मुस्कुराना भूल जाती हो।
मोहब्बत करके तुम उसको जताना भूल जाती हो।
हवा में बात करती हो मुसलसल जिंदगी के संग,
तुम चिड़िया एक ऐसी कि आबोदाना भूल जाती हो।
तुम्हें हमराह कर ही लूं ये अक्सर सोचता रहता हूं मैं,
जब अपने नूर चेहरे को तुम दिखाना भूल जाती हो।
मुझको हर समय लगती सदी की इक नदी सी तुम,
कि अक्सर याद में आंसू बहाना भूल जाती हो।
तुम जिसका परिचय देती हो अपनी दोस्त को हरदम,
वो तुम्हारा कौन लगता है,ये बताना भूल जाती हो।
दुःखों की छांव में पल-बढ़ जिसे आकाश छूना था,
गमों की धूप में तुम अपनी चाहतों को लुटाना भूल जाती हो।
जमाने से करो बातें  नहीं रोका कभी तुमको जमाने ने,
मुकम्मल जिंदगी कहकहों संग तुम जमाना भूल जाती हो।
— वाई.वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

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