कविता

बहुरंगी दुनियाँ

सागर की ऑचल है नीला नीला
धरती लगती है लाल और पीला
पृथ्वी है हमारी अनुपम  उपहार
रंग विरंगा है अपना गाँव जवार

हवा चुमती पर्वत का     माथा
इतिहास में है वीरों की    गाथा
मौसम बदलती देकर   दस्तक
हिमालय है भारत की   मस्तक

कहीं पहाड़ कहीं जंगल की काया
पावन गंगा में अद्भूत है       माया
मोक्ष दिलाती है मृतक की   काया
प्रकृति की है हम पर परम साया

फूल खिले हैं गुलशन गुलशन
कितना पावन है धरा की मौसम
कभी गरमी जाड़ा है।     आती
सूरज की तीखी किरण जलाती

वन उपवन में विछ गई हरियाली
शराब से भरा मयखाने की प्याली
पत्थर की भी यहॉ पूजा होती
धरती माता अन्न दे हमें पालती

ज्ञानी मानव का है यह आशियाना
हर मानव है अपने में बड़ी सयाना
सूरज चाँद की अनुपम   उपहार
स्वर्ग का मिलता है यहॉ पे द्वार

पेरिस लंदन और काश्मीर
देवदूत है यहाँ बना फकीर
साधु संत की अनूठी वाणी
प्रदुशित हो रही पीने का पानी

ईमान बेईमान चलता है चाल
कहीं दरिया कहीं चीन दीवाल
मंदिरों में गुँज रही अमृत वाणी
दादी सुनाती है परियों क्री कहानी

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088