कविता

कविता

बे वफ़ा लोग ही गुज़ारते हैं रातें – बे चैनी की हालत में
वफ़ा करने वालों को तो जीने की – होश ही नही है
यिह तो एक ख़याल था भूल जायिे – अैसे ख़यालों को
ज़िनदगी पर हंसने वालों की तो – दुनिया मे क़मत नही है
समाए रैहते हैं इस तराह के कैई – ख़याल हमारे ज़हन में
पास दुनिया के हमारे ख़यालों को – सुनने का वक़त ही नही है
जलते ही शमा के आँसू आ गैए – वक़त की सूखी आँखों में
कया यिह परवानों की लाशों को – उठाने का वक़त तो नही है
जाम आप की मुहबबत का कभी हम – पिया करते थे बडे शौक़ से
कहाँ गैये वोह दिन पयार के जिन को – जिया करते थे हम ख़ुशी से
सवाल मत की जिये कभी भी हम से – सतारों को तोड कर लाने का
कया गगन का चाँद हम ने आप को – ज़िनदगी में ला कर दिया नही है
—-
रशक की चिनगारियाँ जला रही हैं – इस दुनिया में दुनिया के लोगों ने
कया उलझे हुए अैसे अैसे ख़याल – हर शख़स के ज़हन में नही हैं
रैह जाती हैं अधूरी कैई मनज़लें – ज़िनदगी के अनजान सफ़र में
रासता ज़िनदगी के सफ़र का कया – बीच सफ़र में बदल जाता नही है
—–
सर झुका कर जो शख़स मिला करता है – दूसरों से इस ज़माने में–मदन–
कया राज वोह ही शख़स दुनिया में – इनसानों के दिलों पर करता नही है
झुक कर ही मिलता है जो शख़स – दूसरों से आज की दुनिया में दोसतो
कया क़द उस इनसान का दुनिया में – दूसरों से बडा होता नही है

मदन लाल

Cdr. Madan Lal Sehmbi NM. VSM. IN (Retd) I retired from INDIAN NAVY in year 1983 after 32 years as COMMANDER. I have not learned HINDI in school. During the years I learned on my own and polished in last 18 months on my own without ant help when demand to write in HINDI grew from from my readers. Earlier I used to write in Romanised English , I therefore make mistakes which I am correcting on daily basis.. Similarly Computor I have learned all by my self. 10 years back when I finally quit ENGINEERING I was a very good Engineer. I I purchased A laptop & started making blunders and so on. Today I know what I know. I have been now writing in HINDI from SEPTEMBER 2019 on every day on FACEBOOK with repitition I write in URDU in my note books Four note books full C 403, Siddhi Apts. Vasant Nagari 2, Vasai (E) 401208 Contact no. +919890132570