कविता

हो रहा बेकल सुनो

ये कर्ण के कुंडल तुम्हारे
आंख का काजल सुनो
होठ की लाली तुम्हारी
लट का रंग श्यामल सुनो
जान लेता है हमारी
कर रहा पागल सुनो
ये माथ की बिंदी तुम्हारी
कर रही घायल सुनो।
ये सूट का झिलमिल दुपट्टा
प्रेम का आँचल सुनो
ये हाथ का कंगन तुम्हारा
पुष्प ज्यों कोमल सुनो
ये कंठ हो जैसे सुराही
कर रही शीतल सुनो
ये बोल मिश्री से तुम्हारे
कूजे ज्यों कोयल सुनो
मैं हूँ परिंदा नीड़ का
मेरा हो तुम बादल सुनो
ये दूरियां तुमसे हमारी
कर रही व्याकुल सुनो
ये चाल हिरनी सी तुम्हारी
सोम की बोतल सुनो
इनका नशा कुछ यूं चढ़े
मैं हो रहा बेकल सुनो
हो रहा बेकल सुनो
हो रहा बेकल सुनो
— रघुनाथ द्विवेदी

रघुनाथ द्विवेदी

शिक्षक जनपद-कौशाम्बी ईमेल- ajithwnf@gmail.com मो- 6386309162