मुक्तक/दोहा

ओ मेरे नटराज

मिथ्या जग का एक ही,सच्चा मूलाधार।
तेरा-मेरा कुछ नहीं,शिवमय सब संसार।।

शिवमय इस संसार में,शाश्वत सात्विक कर्म।
सीख यही देता हमें,सत्य सनातन धर्म।।

खोजा तो पाया यही,पृथ्वी हो या व्योम।
गूँज रहा ब्रह्माण्ड में, नाद ब्रह्म बस ओम।।

हे शिवशंकर दीजिये,सद्गृहस्थ वैराग्य।
बारह ज्योतिर्लिंग के,दर्शन का सौभाग्य।।

शिव जैसा दानी नहीं,शिव-सा नहीं फ़क़ीर।
वैसे तो ब्रह्माण्ड ही,है शिव की जागीर।।

सोमवार,श्रावण सहित,है प्रदोष व्रत खास।
यूँ तो सातों वार हैं,शिव के बारह मास।।

शिव जैसा सुन्दर नहीं,शिव जैसा विकराल।
गंगोत्री हैं प्रेम की, उमापति महाकाल।।

विषधर को धारण करे,नीलकंठ नटराज।
लेकिन लिंग स्वरूप में,पूजे सकल समाज।।

हे मृत्युजंय दीजिये,केवल यह वरदान।
नित्य करूँ मैं आपका,पूजन,अर्चन, ध्यान।।

हे त्रिपुरारी आपका,कैसे हो गुणगान।
अज्ञानी अनगढ़ ‘कमल’,कैसे करे बखान।।

भोले तो भूले नहीं,रखते सबका ध्यान।
भूल हमीं से हो रही,कर के निज अभिमान।।

मैं अज्ञानी क्या कहूँ,कह न सके जब संत।
शिव का आदि-अंत नहीं,शिव की कृपा अनंत।।

सर्वोत्तम सद्भावना,सदाचार साभार।
संरक्षण शिव का सदा,सुखमय सब संसार।।

नाशवान संसार में,है मृत्युजंय एक।
जैसी जिसकी भावना,वैसे रूप अनेक।।

मंत्र न जानूँ आपका,नहीं प्रार्थना याद।
भाव प्रबल अति प्रेम है,और मिलन उन्माद।।

तंत्र मंत्र अरु यंत्र से,बँधे न भोलेनाथ।
जो भक्ति निष्काम करे,उसका थामें हाथ।।

काम,क्रोध,मद,लोभ हैं,सहज नर्क के द्वार।
तन-मन शिवमय ही रहे,हो न अशुद्ध विचार।।

भस्मरमैया आप ही,मान,प्रतिष्ठा,लाज।
नमन करूँ मैं आपको,ओ मेरे नटराज।।

— कमलेश व्यास ‘कमल’

कमलेश व्यास 'कमल'

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