भाषा-साहित्य

साहित्य की सेवा ऐसे करोगे

आजकल फेसबुक पर साहित्यिक ग्रुपों की लाईन लगी है। जो कि साहित्य और लेखन को बढ़ावा देने हेतु बहुत ही सराहनीय कार्य है। इन ग्रुपों में नियमित रुप से लेखकों के बीच प्रतियोगिता का आयोजन भी होता है और तीन से पाँच प्रतिभागियों को चुनकर विजेता घोषित करके प्रशस्ति पत्र से सम्मानित भी किया जाता है। कभी-कभी तो सारे मेम्बर्स को विजेता घोषित करके प्रशस्ति-पत्र बाँटे जाते है! पर, यहाँ देखा जाता है कि न रचना का स्तर देखा जाता है, न गलतियों पर गौर किया जाता है। या तो रचना लय में ही नहीं होती है या बीस लाईन की रचना में व्याकरण की 10 त्रुटियाँ होती है। जब ऐसी रचनाओं को विजेता घोषित किया जाता है, तब ऐसा लेख लिखने को मन बेचैन हो उठता है।
पता नहीं रचना के किस पहलू का मूल्यांकन करके निर्णय लिया जाता है, ताज्जुब होता है। साहित्य के स्तर को इतना गिरा हुआ देखकर दु:ख भी होता है। वैसे संचालक मंडल भी क्या करें? अब हर रोज़ तो कुछ एक अच्छा लिखने वालों को विजेता घोषित नहीं कर सकते! इसलिए सबको खुश रखने के चक्कर में फालतू से फालतू रचनाओं को विजेता घोषित करके ये साहित्यिक ग्रुपों वाले साहित्य का बेड़ा गर्द कर रहे है। साहित्य की सेवा ऐसे करोगे? और सम्मान पाकर सामान्य और निम्न स्तरीय लिखने वाले लेखक भी खुद को महान समझते उसी ढ़ंग से लिखना चालू रखते है।
अगर साहित्य को बढ़ावा ही देना है तो ग्रुप को एक स्कूल की तरह बनाईये। कमज़ोर रचनाकारों की गलतियों और व्याकरण त्रुटियों को नजर अंदाज़ करने की बजाय सुधारकर लिखने को बोलिए। लेखन की शैली, शब्दों का चयन, काफ़िये का मिलना, प्रास का जुड़ना ऐसे हर पहलू को जाँच कर परिणाम घोषित करना चाहिए। मेम्बर्स को जोड़े रखने की नीति और सारे लेखकों को खुश रखने की लालच साहित्य की धज्जियां उड़ा रही है।
माना हर लेखक सीख कर ही आगे बढ़ता है। पर यहाँ सीखाने की जगह त्रुटियाँ और गलतियों की सराहना करते प्रशस्ति-पत्र चने कुरमुरे की तरह बाँटकर लेखक की जगह जानें क्या खड़े कर रहे है। तभी आज के दौर में लेखकों का मजमा उमड़ा है और पाठक कम होते जा रहे है। कौन पढ़ेगा ऐसा साहित्य जो चौथी पाँचवी कक्षा के विद्यार्थी ने लिखा हो उससे भी गया गुज़रा हो। कहाँ दिखते है इस युग में रविन्द्रनाथ टैगोर, मुन्शी प्रेमचंद, धर्मवीर भारती, रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन, महादेवी वर्मा और सुभद्रा कुमारी चौहान जैसे आदर्शवादी लेखक। सबसे पहले अच्छा लेखक बनने से पहले अच्छा पाठक बनना पड़ता है। पर आजकल एक दूसरे को कोई नहीं पढ़ता। सब अपनी-अपनी फेसबुक वाॅल पर लिखकर निकल लेते है। अगर दूसरे की रचना सामने आती भी है तो बेहतरीन , बहुत खूब और शानदार लिखकर लाईक-कमेन्ट का व्यवहार पूरा कर लेते है। पढ़ने का शौक़ और जुनून लेखक को पालना चाहिए, दूसरों का लिखा अच्छा लिखने के लिए प्रेरित करता है।
आड़ी-टेढ़ी आठ दस लाईन लिख लेने से और ऐसे साहित्यिक ग्रुपों से प्रशस्ति-पत्र पाकर लेखकों का उद्भव नहीं होता। भेड़-बकरी की चाल से अलग अपना अस्तित्व तराशिए। मत जुड़िए आपके हुनर को झूठी तारीफ़ों से नवाज़ने वाले ऐसे अनगढ़ ग्रुपों से, इन सबसे उपर उठकर खुद की कल्पना शक्ति को विकसित करके, पुराने लेखकों को पढ़ कर सीखने से और शब्दों के चयन को महत्व देते उत्कृष्ट दरज्जे का लेखन आपको सर्वश्रेष्ठ लेखक बनाएगा। लिखना कोई बच्चों का खेल नहीं। एक प्रबुद्ध व्यक्ति को उसकी सोच, समझ, कल्पना शक्ति और आसपास घट रही घटनाओं का निरिक्षण करने की क्षमता उसे उत्कृष्ट लेखक बनाता है। साहित्य की धरोहर को संभालना हर लेखक का नैतिक फ़र्ज़ है, बशर्ते लेखन को पूजा समझते अपने आप को तराशते रहो और जानदार लेखन से खुद को साहित्य जगत में प्रस्थापित करो। पढ़ने का शौक़ और लेखन का जुनून होना चाहिए।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर