कविता

बंधन

अपनी घनी जुल्फों की उलझन में
मोहब्बत की एक कसमें दिला देना
मधुकर की तरह बहक जाऊँ अगर
फिर प्यार की  बंधन में बाँध लेना

शाम सबेरे तेरे गलियों में       मैं
चक्कर हर दिन लगाने आ जाऊँगा
औरों की नजर बचाकर अब तेरी
दीदार कर घर वापस आ।  जाऊँगा

पहाडों से जो बह रही है ये    बयार
तेरे आँचल में रूक समा      जायेगा
मीठी मीठी नींद में अक्स उभर। कर
तेरी नजरों में नित्य आ समा   जायेगा

जब से देखा है मेरी नजरों ने    तुमको
सब कुछ बदला बदला सा  लगता है
हर रात ख्वाबों के महल में तुम आकर
तन्हाई में क्यों दस्तक दे भग जाती हो

आँख मिचौली का कब तक होगा ये
खेल खेल में प्यार का        तकरार
मेरे दर पे अब दस्तक देकर   तुम
पहना दो मोहब्बत का वो        हार

बाँध लो अपनी प्यार की बंधन में
थक कर हार गया हूँ मैं।      जानम
बसा लेगें एक अपनी आशियाना
जब मिलेगें एक दुजै में   हम तुम

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088