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आकर्षक व्यू पाइन्ट बन सकता है शहर विलास

एक ओर हम पर्यटन के नाम पर आधुनिक विकास के आयामों का दिग्दर्शन कराने के लिए भिड़े हुए हैं वहीं प्राचीन शिल्प-स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्त्व के स्थलों की कोई सुध नहीं ले रहे हैं जबकि मामूली धनराशि लगाकर योजनाबद्ध विकास किया जाए तो हैरिटेज स्वरूप को बरकरार रखते हुए इन्हें आबाद कर पर्यटन व भ्रमण के बेहतर स्थलों के रूप में विकसित कर सकते हैं। लेकिन इस दिशा में न तो सरकार कोई ध्यान दे पा रही है न पर्यटन विकास के नाम पर कमा खा रहे और प्रसिद्धि प्राप्त कर रहे तथाकथित पर्यटन विशेषज्ञ और स्थानीय बुद्धिजीवी। इसके मूल में जाने पर यही बात सामने आती है कि मरम्मत और जीर्णोद्धार में कोई ख़ास पैसा नहीं लग पाने की स्थिति में विकास पुरुषों से लेकर ठेकेदारों तक को उतना लाभ नहीं मिल पाता जितना नए स्थलों के विकास में। नवीन स्थलों के विकास में वांछित बजट भी मिलता है और उससे कई सारे अघोषित लाभों को पाने के सारे रास्ते खुले रहते हैं।

प्राचीन स्थलों की बनावट, शिल्प और स्थापत्य तथा मजबूती आज के आधुनिक विकास तीर्थों और पर्यटन स्थलों को चिढ़ाने के लिए काफी है। इसी तरह का एक उपेक्षित पुरा स्थल है – शहर विलास। इस स्थल को व्यू पाइन्ट के रूप में विकसित किया जाए तो यह बेहतर एवं आकर्षक स्थल साबित हो सकता है। बांसवाड़ावासियों में से अधिकांश ऐसे हैं जो इसके करीब कभी नहीं गए, केवल दूर से ही दर्शन कर लिया करते हैं। बांसवाडा शहर के दक्षिण-पूर्वी छोर की पहाडी पर स्थित यह भव्य कोठी मीलों तक अपना आकर्षण बिखेरती है। इसे ’शहर विलास की कोठी‘ के नाम से जाना जाता है।

शिल्प-स्थापत्य की दृष्टि से बेमिसाल इस कोठी का निर्माण बांसवाडा रियासत के महारावल लक्ष्मण सिंह द्वारा कराया गया था। पहाड़ी के शीर्ष पर गोल घेरे में बनी इस घुमावदार कोठी से पूरे बांसवाडा का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है। राज परिवार के लिए सुकून और सुरक्षा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण इस कोठी का सीधा संबंध राजमहल से रहा है। बुजुर्गों की मानें तो राजमहल से इस कोठी तक पहुंचने के लिए भूमिगत सुरंग है और इसी से होकर राजा और राज परिवार के सदस्य इस कोठी तक पहुंचते थे। यह भी माना जाता है कि शहर विलास कोठी से राजमहल तक की सुरंग के बीच कोई गुप्त खजाना भी गडा हुआ है। वर्षों से सुरंग का उपयोग बन्द हो जाने की वजह से अब सुरंग की दीवारें क्षतिग्रस्त हो गई हैं वहीं दोनों तरफ से प्रवेश-निर्गम द्वार भी बन्द हैं। अब यह सुरंग ऐतिहासिक गाथा हो चली है।

आप भी यदि बांसवाडा के विहंगम दृश्य को अपनी नजर से देखना चाहें तो शहर विलास कोठी सर्वाधिक उपयुक्त स्थल है जहां से बांसवाडा शहर की सभी दिशाओं का नजारा देखा जा सकता है। शहर विलास की पहाडी को पर्यटन की दृष्टि से विकसित किए जाने की व्यापक संभावनाएं हैं और यह शहर का अच्छा पर्यटक स्थल बन सकता है। लेकिन इस दिशा में कभी सोचा नहीं जा सका है। बांसवाड़ा के राज परिवार से सम्पर्क स्थापित कर उनकी सहमति से सरकार की ओर से कोई योजना बन जाए तो शहर विलास शहरवासियों के विलास को बहुगुणित करने के लिए सक्षम है। इस दिशा में सार्थक कोशिशें की जानी चाहिएं। इसके लिए व्यक्तिगत लाभ-हानि के गणित से परे रहकर सोचे जाने की आवश्यकता है।

डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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