गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

किससे किसको डर लगता है।
खुद को खुद से डर लगता है।
शैतानों के क्या कहने अब,
इंसानों से डर लगता है।
पैताने कब से बैठे हैं,
सिरहानों से डर लगता है।
रोने पर जाने क्या होगा,
मुस्कानों से डर लगता है।
झूठों का दरबार सजा है,
ईमानों से डर लगता है।
गला घोंट रख दे न मेरा,
दीवानों से डर लगता है।
भ्रष्ट हुई जब से दुनिया,
अनुमानों से डर लगता है।
— वाई. वेद प्रकाश

वाई. वेद प्रकाश

द्वारा विद्या रमण फाउण्डेशन 121, शंकर नगर,मुराई बाग,डलमऊ, रायबरेली उत्तर प्रदेश 229207 M-9670040890