कहानी

दरोगा और दरोगा साहब

गाँव का चौपाल,बरगद पेड़ के नीचे गहमा-गहमी चारो तरफ कोलाहल!! गाँव के सारे जनमानस एक दूसरे से घटी-घटना के बारे में बिना रुके झुंड के झुंड होकर वार्तालाप कर रहे हैं।लोग किसी अप्रत्याशित परिणाम के बारे में सोंच-सोंच कर भयभीत है।तभी अचानक पुलिस की कमांडर जीप सायरन बजाते चौपाल के पास पहुचती है।जैसे ही जीप चौपाल के पास पहुचती है।वहाँ सन्नाटा छा जाता है।मानो पाला मार गया हो।उस जीप से एक अपराधी जिसके हाथों में हथकड़ी लगी हुई है नीचे उतारा जाता है।साथ में दो हवलदार और एक दरोगा भी उतरता है।
गाँव का मुखिया सरपंच चौपाल से लगी खाट से उठकर दरोगा से कहते हैं- “नमस्कार साहब जी। आइए आइए साहब बैठिए।” और उनको एक अलग खाट में बिठाते है,और सरपंच बगल में लगे खाट में बैठ जाते हैं।
तभी दरोगा साहब चिल्लाते हुए कहते हैं- “अरे! कोतवाल! कहाँ हो?”
कोतवाल थरथराते हुए- “जी हुजूर! जी हुजूर!” कहते हुए दरोगा के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो जाता हैं।और कहता है- “कहिए हुजूर क्या हुक्म है?।
तब दरोगा जी कहते हैं- “सरपंच और पंचों का पंचनामा हेतु हाजिर करो।”
कोतवाल सभी को हाजिर करता है। दरअसल जो कैदी पकड़ा गया है, वह अवैध रूप से अपनी बाड़ी में कच्ची शराब बनाते हुए पकड़ा गया, जिसको मुखबिरी के आधार पर पकड़  के चौपाल में उपस्थित किया गया है। तभी दरोगा साहब अपराधी को घुड़कते हुए कहते हैं- “क्या नाम है तुम्हारा ?
“द..s.द s s s दारोगा….  साsss.. साहब !”
“क्या बकते हो ?” पूरा नाम बताओ?
तब अपराधी कहता है- “दरोगा लाल!”
“दरोगा तुम हो कि मैं हूँ ?”
अपराधी कहता है- “आप हो और मैं भी!!” और मुस्कुराने लगता है।
दरोगा उसकी इस धृष्टता से लाल-पीले हो जाता है।अपराधी के जवाब से चौपाल में ठहाका गूंज जाता है।कोतवाल जोर से चिल्लाता है- “हल्ला खामोश! हल्ला खामोश!”
पुनः दरोगा साहब पूछते हैं- तुम्हारे पिता का क्या नाम है?
” साहेब!” साss..साहब जी!”
दरोगा कहता है- “क्या बक रहे हो? तुम्हे पता है, क्या कह रहे हो? पता है साहब जी।”
पुनः दरोगा कहता है- “पूरा नाम बताओ?
अपराधी कहता है- साहेब लाल।” चौपाल में फिर वही ठहाका! “खमोश! हल्ला खामोश!” फिर सन्नाटा छा जाता है।
पुनः दरोगा पूछते हैं- “तुमारे दादा जी का क्या नाम है?”
तब अपराधी कहता है- “मुंशी!”
तब तो दरोगा कंझा के सिर पकड़ लेते हैं। और किटकिटाते हुए कहते हैं।ये क्या मजाक बना रखा है।जब देखो तब ….।”
कहते हुए चुप हो जाते हैं।कुछ समय चुप रहने के बाद- ” पूरा नाम बताओ?”
“मुंशी लाल।”अपराधी कहता है।
तब वह दरोगा तिलमिलाते हुए वहाँ उपस्थित पंच-सरपंच से उस अपराधी के बारे में सच्ची जानकारी लेते हैं।और पूछते हैं- “क्यो भाई यह जो अपराधी बोल रहा है वह क्या सही-सही है?
तभी सरपंच खड़ा होकर कहता है- “जी दरोगा साहब! बिल्कुल सच्ची बात है।”
तब दरोगा आवाक हो जाते हैं।और झेंप कर मुस्कुरा देते हैं और कहते हैं-“ठीक है! ठीक है!
“अपराधी ने कच्ची शराब बनाकर कानून अपने हाथों लिया है। जो समाज और देश के लिए घातक है।इसकी सजा तो जरूर मिलेगी।”
तब वह अपराधी दरोगा के चरणों मे गिर जाता है।और गिड़गिड़ाते हुए कहता है- “मुझे माफ़ करदो हुजूर! मुझसे बहुत बड़ा अपराध हो गया है। मैं आज कसम खाता हूँ, की आज के बाद यह अपराध मैं कभी न करूँगा,न किसी को करने दूँगा।”
उसके अपराध कुबूल करने और सुधरने की बात को सुनकर दरोगा उसको उसकी सजा कम कराने की समझाईस देते हैं।और फिर सिपाहियों के  द्वारा  अपराधी को जीप में बिठाया जाता है। इस दृश्य को देखकर चौपाल में पुनः सन्नाटा छा जाता है,और सभी लोगों को मालुम हो गया था की बुरे कर्म का  परिणाम हमेशा बुरा होता है।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578