कविता

द‌ केरल स्टोरी

कभी, जागेगें भी
या सदा , सोए रहेंगे
बस ख्याली , पुलावों में ही
हम, खोए रहेंगे ।।

धर्मांतरण, का खेल
तेजी से पनप, रहा है
धीरे -धीरे , हमको
शिकंजे में, जकड़ रहा है ।।

सीमित था जो,कुछ राज्यों तक
अब फन फैला , रहा है
मानो या, न मानो
कहर बरसा, रहा है।।

अभी तक, बस सुनते भर थे
विश्वास का, आधार न था
देख लीजिए द, केरल स्टोरी
पता चलेगा, मिथ्या प्रचार न था।।

आंखें बंद , कर लेने से
हक़ीक़त नही , बदलेगी
समस्या, बड़ी है
ऐसे नही, सुलझेगी ।।

कई- कई , राज्यों में तो
पानी सर के , ऊपर है
विदेशी, घुसपैठ से
साधनों पर , संकट है ।।

सरकारें, मूकदर्शक बन
तमाशा देख, रही हैं
करतीं जोड़ – घटाना
पासे फ़ेंक, रही हैं।।

वोट बैंक, की खातिर
बढ़ावा ख़ुद, देते हैं
बस चलती , रहे सरकार
बहाने ढूंढ, लेते हैं।।

हम लेकिन, कब तक
सब कुछ, बर्दाश्त करेंगे
बुद्धिजीवी, कहलाने भर को
या कुछ , प्रतिकार करेंगे।।

लगता है, जनता को ही
अब आगे, आना होगा
सबसे पहले, खुद जगकर
ज्ञान का दिया, जलाना होगा।।

निपटे गर ,शान्ती से मसला
इससे बेहतर, बात नही
अन्यथा , जैसे को तैसा
का मार्ग,‌ अपनाना होगा ।।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई