सामाजिक

पाखंड को मत पोषिए

समाज में चल रहे पाखंड को देखकर लगता है, क्या हम सच में इक्कीसवीं सदी के आधुनिक युग में जी रहे है? जहाँ एक और विज्ञान परीक्षणों द्वारा हर मुद्दों को प्रमाणित कर रही है; वहाँ दूसरी और लोग धर्म के नाम पर अंधश्रद्धा और पाखंड को बढ़ावा दे रहे है।
कुछ नहीं हो सकता लोगों का! पढ़ी, लिखी जनता अब भी उनके ही जैसे सामान्य इंसान को भगवान का दर्जा देकर पाखंड को पोष रही है। कौन है ये बागेश्वर धाम के नाम की गद्दी पर बैठकर लोगों को मूर्ख बनाने वाला? जिस उम्र में बच्चें पढ़ लिखकर कुछ बनने की जद्दोजहद कर रहे है, वहाँ ये लड़का हनुमान जी का भक्त बनकर लोगों की भावनाओं से खेल रहा है। न उसको कोई रोकने वाला है, न सही समझ देने वाला। उपर से डरी हुई और ज़िंदगी से त्रस्त जनता अपनी समस्याओं का समाधान उस बच्चे में ढूँढ रही है। पढ़ा लिखा गँवार समाज है हमारा।
उसके मुँह पर राम का नाम भी शोभा नहीं देता, जब किसीको अपना लिखा चमत्कार पढ़ने से पहले राम शब्द का उच्चारण करता है, तब एक डर साफ़ दिखाई देता है उसके चेहरे पर कि भगवान लाज रख लेना! कहीं गलत साबित न हो जाऊँ। अगर इतना ही दम है तो देश के ज्वलंत मुद्दों को सुलझा कर दिखाएँ।
सनातन धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे है बड़ी अच्छी बात है, करना ही चाहिए। पर, ये तो धर्म और अध्यात्म की समझ देकर जनता को सही राह दिखाने की बजाय अंधेरे कुएँ में धकेल रहा है और लोग भेड़ चाल का हिस्सा बनकर उस पाखंड को चमत्कार समझते जुड़ रहे है। ताज्जुब की बात है लोग उनको भगवान समझते, पैर पड़ते, दंडवत करते गिड़गिड़ाकर अपनी समस्याएँ बताकर अपनी किस्मत बदलवाने की बिनती कर रहे होते है। और बाबाजी के आशीर्वाद पाकर निहाल हो जाते है। अरे अबूध प्रजा डायवर्ज़न क्यूँ लेते हो? सीधा रास्ता जब साफ़ है। ईश्वर को यहीं-तहीं मत ढूँढो आपके भीतर ही विराजमान है। राग, द्वेष त्यज कर सच्चे मन से पुकारो तो सही। अपने अंदर ही दरश पाओगे।
चमत्कारों पर विश्वास करने की बजाय खुद पर विश्वास करो, सुविचारित बनों, मेहनत करो और ईश्वर पर श्रद्धा रखो न कि ऐसे बाबाओं के भरोसे ज़िंदगी की कश्ती बहाओ।
जो बातें और प्रवचन बाबा लोग व्यास पीठ पर बैठकर देते है! वो सारी बातें, सारी समझ क्या हममें नहीं है? उनके कहने पर ही हम सद्विचारों का आचरण करेंगे? हमारी बुद्धि क्या घास चरने गई है? अपनी सोच को खुद हम ही विकसित कर सकते है। सही गलत की समझ हम सबको है। पर खुद मानसिकता नहीं बदलेंगे, बाबा की गलत बात भी सही मानते नतमस्तक बन झुक जाएँगे। दर असल मनुष्य डरपोक प्राणी है सच में, हर पाप हर दु:ख का निजात ऐसे बाबाओं की शरण में ढूँढते है। चमत्कार में मानते है। और ऐसे भगवाधारी बाबा इंसान की कमज़ोर नब्ज़ अच्छी तरह पहचानते है। ईश्वर के नाम का डर और अपने ही लोगों द्वारा दो चार चमत्कार दिखाकर अपनी रोटियां शेकते है। कितने बाबाओं का पर्दाफाश हुआ, जेल की हवा खा रहे है फिर भी न बाबाएँ सुधरते है! न जनता। सरकार को ऐसे पाखंड पर बैन लगाना चाहिए।
बेशक चमत्कार होता है अगर दिल साफ हो और ईश्वर पर श्रद्धा हो तो, एक दर्द भरी पुकार पर आज भी ईश्वर दौड़े चले आते है, कलयुग में भी प्रमाण देते है। पर हमारी श्रद्धा उस ईश्वर पर नहीं।
आप और हम जैसे इंसान से चमत्कार की अपेक्षा रखते, भेड़ बकरी की चाल में शामिल होकर बौद्धिक स्तर का पतन कर रहे है। पर इसमें बाबाओं की गलती नहीं, मूर्ख बनने वालों की तादात मिल जाए तो फ़ायदा उठाने वालों की चाँदी ही चाँदी है।
— भावना ठाकर ‘भावु’ 

*भावना ठाकर

बेंगलोर