कविता

शासकीय नौकरी में बहुत माल कमाया हूं

चकरे खिला खिला कर जेब ढीली किया हूं
भ्रष्टाचार के क्षेत्र में बहुत नाम कमाया हूं
अभी-अभी भ्रष्टाचार केस में सस्पेंड हुआ हूं
शासकीय नौकरी में बहुत माल कमाया हूं
सस्पेंड होने से परेशान नहीं संतुष्ट हुआ हूं
घर में हरे गुलाबी के पहाड़ बनाया हूं
फ़िर ज्वाइन होने की जुगाड़ भिड़ाया हूं
शासकीय नौकरी में बहुत माल कमाया हूं
कॉलर टाइट ठस्के से समाज में खड़ा हूं
सामाजिक कार्यों में बहुत डोनेशन चढ़ाया हूं
करोड़ों इन्वेस्टमेंट कर लाखों ब्याज खाता हूं
 शासकीय नौकरी में बहुत माल कमाया हूं
जिंदगी में हरे गुलाबी दोहान का मंत्र पाया हूं
सालों से शासन का अनुभवी पका पकाया हूं
शासन की तिजोरी खाली करने में माहिर हूं
शासकीय नौकरी में बहुत माल कमाया हूं
कुछ दिनों में लग जाऊंगा आश्वासन पाया हूं
हरे गुलाबी पहाड़ से कुछ चढ़ावा चढ़ाया हूं
बस ईडी एजेंसियों के डर से जी रहा हूं
शासकीय नौकरी में बहुत माल कमाया हूं
— किशन सनमुख़दास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया