गीत/नवगीत

वर्षा ऋतु का गीत

धूम मचाती जल बरसाती, वर्षा रानी आई ।
आज मगन मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।
वसुधा की सब प्यास बुझ गई,हुआ आज मन हर्षित।
मौसम में खुशियों की हलचल,पोर-पोर है पुलकित।।
हरियाली की बजी आज तो,मीठी-सी शहनाई।
आज मगन मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।
मेघों की तो दौड़भाग है,मोरों का है नर्तन।
हरियाया वन निज सत्ता का,करता ख़ूब प्रदर्शन।।
पावस के इस ख़ास दौर में,पोषित है तरुणाई।
आज मगन मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।
आतप का तो दौर ढल गया,जलबूँदों की महिमा।
आज बरसते जल में तो है,सुधा सरीखी गरिमा।।
दमक रही है नभ में बिजली,भय की सिहरन आई।
आज मगन मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।
कुँए,झील,तालाब भर गये,खेतों में है पानी।
अब किसान के मुखड़े पर है,खेले नई जवानी।।
सावन-भादों हर्षाये हैं,शिवपूजा मन भाई।
आज मगन मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।
वरुण देव की दया हो गई,आज प्रकृति आनंदित।
आकर्षण,सम्मोहन दिखता,हुआ नेह परिभाषित।।
उमड़ी-घुमड़ी सरिताओं में,दिखी नवल प्रभुताई।
आज मगन मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।
विरह जगाती है यह वर्षा,प्रियतम बिन मायूसी।
मिलना कैसे होगा अब तो,क़िस्मत हुई रुआँसी।।
इस सावन ने बैर भँजाया, तन में आग लगाई।
आज मगन मन वृक्ष ले रहे,झूम-झूम अँगड़ाई।।
— प्रो. (डॉ.) शरद नारायण खरे

*प्रो. शरद नारायण खरे

प्राध्यापक व अध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय जे.एम.सी. महिला महाविद्यालय मंडला (म.प्र.)-481661 (मो. 9435484382 / 7049456500) ई-मेल-khare.sharadnarayan@gmail.com