राजनीति

क्या लोकतन्त्र के नाम पर हमें इस अनैतिक राजनीति का हिस्सा बनना ही पड़ेगा?

यदि माहराश्टर की राजनैतिक घटनाए एक ईषारा भेज रही हैं तो वह यह है कि हम भारतीय लोकतन्त्र के लोगों को, जिसे कि हमारे प्रधानमन्त्री ने हाल में ही दुनिया के सभी लोकतन्त्रों की मां बताया, मूल्य वहीन राजनिती का हिस्सा बनना ही पड़ेगा। सब से हैरान करने वाली बात यह है कि जितने भी राजनिती पर लिखने वाले हैं या फिर समाचार पत्रों के सम्पादक है, किसी ने भी जो कुछ भी हुआ उसकी भत्सर्ना नहीं कि, उन्होने इस बात को ही उजागर किया कि इस उल्ट फेर सें किस राजनैतिक पार्टी को कितना फायदा या नुकसान होगा। अर्थात यह अनैतिक व भददी रातनिती तो अब लोकतन्त्र का हिस्सा है। आप वोट कांग्रेस के विरू़द्ध भाजपा को दें और हैरान न हों यदि षपथ लेने वाले दिन चुना हुआ सदस्य कांग्रेस की तऱफ से षपथ ले रहा है।हम टी वी की चर्चाओं में तो इस की उमीद ही नहीं करते कि ऐसी राजनिती की भर्तसना की जाएगी क्योंकि पिछले कुछ वर्शो में हमारा ईलैक्टरोनिक मिडिया मसालेदार चर्चाओं के लिए जाना जाने लगा है, निडर होकर बात कहने वाले रहे ही नहीं।।

भारतीय जनता पार्टी, जिसे भाजपा कहा जाता है, उसका जन्म मेरे सामने ही हुआ और मैने उसे षिषुकाल से आगे बड़़ते देखा है। यह भी सत्य है कि मेरी हमदर्दी व लगााव इस पार्टी के साथ रहा । इसके दो तीन कारण थे। पहला उस समय कांग्रेस का राज था व राजनिती पर पूरा दबदवा था। बाकी दल उसके सामने कुछ भी नहीं थे। लम्बे समय से राज का सुख भोगने के कारण पार्टी में बहुत सी बुराईयां आ गई थी। भ्रश्टाचार को लोकतन्त्र व षासन प्रणाली का हिस्सा मानना जिसमें मुख्य था। दूसरा, कांग्रेस पार्टी लोकतन्त्र के मूल्यों को भूलती जा रही थी। व्यक्ति पूजा उस में घर कर गई थी, जिसका मुख्य कारण यह था कि तत्काल प्रधानमन्त्री इन्दिरा गाांधी का कद अपनी पार्टी के ही बड़े सिंडीकेट को मात दे कर व 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान के टुकड़े कर बंगलादेष एक नया देष बना देना जैसे बड़े कारनामें करने के बाद, बहुत उंचा हो गया था। यहां तक कि विपक्ष भी मान चुका था कि इन्दिरा गांधी को हराना लगभग असम्भव है। इन्दिरा गांधी प्रभाव उतर से दक्षिण व पूर्व से पष्चिम तक ऐक जैसा था। आंघरा प्रदेष के लोग भी चाहे हिन्दु हो या मुसलमान वैसे ही वोट उालते थे जैसे कि आसाम या पंजाब के सिक्ख। अटल विहारी जी ने भी उसे मां दुर्गा की उपाधी दे की थी। यह मान लिया गया था कि नेहरू इन्दिरा गांधी परिवार ही भारत पर राज करने का हक दार है। चुनाव तो ओपचारिकता बन गए थे। परन्तु उस समय हिन्दुत्च का कोई मुददा नहीं था।

इसके विपरीत जनसंघ जो कि भाजपा का पहले नाम था, कुछ मूल्यों पर आधारित नई व बहुत छोटा दल था, जिसका प्रभाव दिल्ली, पंजाब व हिमाचल व कुछ हद तक उतर प्रदेष तक ही सीमित था। जो भी इसके नेता थे वे त्याग व सादगी का जीवन जीते थे। कुछ असूलों पर चलने वाले थे उस में ईमानदारी व नैतिकता मुख्य था। यह बात उपर से नीचे तक थी। दीन दयाल उपाध्याय, अटल बिहारी बाजपाई, लालकृश्ण अडवाणी, बलराज मधोंक, उनके षीर्ष नेता ऐसे जीवन के लिए मषहूर थे।

मुझे याद आती है 1972 के चुनावों की। हिमाचल प्रदेष विधान सभा के चुनावों मे जनसंघ ने 68 में से 5 सीटें जीत कर अपना नाम दर्ज किया। ंउनमें षिमला विधानसभा क्ष्ेात्र से जीतने वाले थे श्री दौलतराम चौहान। वह आर्य समाजी थे व षिमला आर्य समाज में पुरोहित भी रह चुके थे इसलिए मेरे पिता जी के मित्र थे। चुनाव लड़ने के लिए उनके पास कोई पैसा नहीं था। षुभ चिन्तको ने ही थोड़ बहुत खर्चा किया था। भाजपा हाईकमांड भी ऐसे व्यक्तियों को ही टिकट देती थी। कांगड़ा से चुनाव जीतने वाले कंवर दुर्गा चन्द उन से भी गरीब थे।

वह जमाना धूस का नहीं पर लिहाज का था। जब श्री दौलतराम चौहान विधान सभा सदस्य बन गए तो उनके जानने वाले उनके पास काम के लिए जाने लगे। परन्तु वह असुलों के बहुत पक्के थे। जो काम कायदे कानून के अनुसार नहीं होता उसे ‘‘ असम्भव ‘‘ कह कर बापिस भेज देते। हाल यह पहुंच गया कि लोगों ने उनका नाम ही ‘‘असम्भव‘‘ रख दिया। परन्तु उन्होने अपने असूल नहीं बदले।

1977 में इन्दिरा गाांधी को हैराने के लिए सभी विपक्षी दलों ने जनता पार्टी का गठन किया । परिणाम स्वरूप जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया। परन्तु जनता दल में आपसी कलह के कारण 1980 में जनसंघ ने भाजपा के रूप मे पुनरजन्म लिया। 1984 के संसद चुनाव में भाजपा के हिस्से केवल दांे सीटे आई राजीव गांधी 400 से भी अधिक सीटें जीतकर प्रधानमन्त्री बने परन्तु उनके पास अनुभव नहीं था। मुसलमान तुश्टीकरण में उलझ गए। श्री रामकृश्ण अडवाणी के साहस और दूरद्रषिता ने रामजन्मभूमी का मुददा खड़ा कर दिया। लोगों ने साथ दिया व 1989 के चुनसव भाजपा 87 सीटे जीतकर लोकसभा में एक बड़े दल के रूप में उभरी। मेरी राय में भाजपा को जीवित कर कांग्रेस की टक्क्र की पार्टी बनाने में जिस व्यक्ति का सब से बड़ा हाथ है वह श्री लालकृश्ण आडवानी।

भाजपा ने उतर प्रदेष जैसे बड़े प्रांत में सरकार बनाई और अगले 10 साल में दूसरे दलों के सहयोग से केन्द्र में दो बार सरकार बनाई। दूसरी सरकार पूरे समय तक रही परन्तु अब र्षीष नेता बूढ़े हो गए थे व षासन की डोर प्रमोद महाजन जैसे नवयुवकों के पास आ गई थी जो कि जहां तक मूल्यों की बात है कांग्रेस पार्टी का रास्ता अख्तयार कर चुके थे।

2014 में श्री नरेन्दर मोदी ने मनमोहन सिंह सरकार के 10 साल के षासन के दौरान कांग्रेस में फैले भ्रश्टाचार े को मुददा बना का चुनाब जीत लिया। उसके बाद कांग्रेस का नेतृत्व के आभाव में लगातार पतन जारी रहा। जब कि भाजपा सुदृड़ होती गई। दक्षिण के प्रांतो, उड़ीसा व बंगाल में बहुत प्रयत्नों के बाद भी भाजपा स्थान न बना जब कि राजस्थान, छतिसगढ़ में कांग्रेस के स्थानिय नेताओं का दबदवा बरकरार है। बिहार में नितीष व महाराश्टर में षिवसेना द्वारा साथ छोड़ने के साथ कर्नाटक, हिमाचल व पंजाब की हार के बाद भाजपा की चिन्ताए बड़ना स्वभाविक हैं । परन्तु इसका अर्थ यह नहीं सता में बने रहने के लिए वही हथकंडे अपनाए जाऐं जिसका वह किसी जमाने में विरोद्व करती थी। माहराश्टर की राजनैतिक घटनाओं ने पुराने भाजपा के षुभचिन्तको को बहुत निराष किया है।

यह सच्चाई है कि एक बार गददी मिलने के बाद कोई भी छोेड़ना नहीं चाहता । यह श्री नरेन्दर मोदी के साथ भी उतना ही सत्य है। वह अपने लिए तीसरी टरम चाहते हैं परत्तु सोचना यह है कि यदि इन हथकण्डों के बाद तीसरी बार प्रधानमन्त्री बन भी गए पर इस सब के बाद भाजपा का भविश्य क्या है। फिर पार्टी में क्रांग्रेस से आए नेताओं का वर्चस्व हो गया तो ओं कुछ भी हो सकता है।भाजपा नेताओं का दल था व इस के नेता एक समय में बहुत निडर व स्पश्टवादी होते थे परन्तु आज लगता ही नहीं कि श्री मोदी व षाह को छोड़कर कोई नेता है। हां उतर प्रदेष में श्री योगी वैसे ही नेता है परन्तु वह अपने कार्य में व अपने प्रान्त में ही व्यस्त है और षायद उस से बाहर आना भी नहीं चाहते।

मेरा मानना है कि जब एक अच्छा व्यक्ति अपनी उन अच्छाईयों को छोड़ देता है जिन के कारण वह उपर उठठा होता है तो लोगों को उस से उस व्यक्ति की अपेक्षा जो बुरा था, निराषा अधिक होती है, इसी कारण से कोई हैरानगी नहीं होगी यदि 2024 में लोग दूसरे दलों की और झुकते नजर आंए इसका खमयाजा भाजपा को भुगतना पड़े। भाजपा के पुराने नेताओं को गुजरात लोवी के विरूद्व आवाज उठानी होगी तभी भाजपा का उद्धार है वरना यदि 454 सीट जीतने वाली कांग्रेस खत्म हो सकती है तो भाजपा तो कुछ भी नहीं।

— भारतेन्दु सूद

भारतेंदु सूद

आर्यसमाज की विधारधारा से प्रेरित हैं। लिखने-पढ़ने का शौक है। सम्पादक, वैदिक थाट्स, चण्डीगढ़