कहानी

कर्म और भाग्य

माँ की अनमोल सीख लिए नीता ससुराल पहुँच गई थी। सासु माँ, ससुर जी और जेठ, जेठानी, भरा सा घर था। जेठ जी की छोटी सी प्यारी सी दो साल की बेटी भी थी। सासु माँ थोड़ी.. थोड़ी क्या बहुत सख्त थी। इतनी सख्त कि दोनों बेटे, जेठानी जी यहाँ तक की दो ब्याही बड़ी ननदे तक डरते थे। ससुर जी अपनी पत्नी का स्वभाव जानते थे। बहुत बार कोशिश भी की थोड़ा प्यार से बात किया करो बहू से, पर स्वभाव कहाँ बदलते हैं। इतनी जल्दी तो बिलकुल नहीं और पूरी तरह से तो सवाल ही नहीं उठता। खैर दिन तो कट रहे थे पर रिश्ते भी कट रहे थे। नीता के ससुराल में आने से पहले ही सासु माँ और जेठ, जेठानी में अनबन हो गई थी। बात इतनी बढ़ गई थी कि नीता के पति से भी नाराज़गी हो गई थी कि माँ के साथ मिलकर हमें परेशान करते हैं। ससुर जी से सब कुछ समान्य था। जेठ, जेठानी तो बस नीता के आने का इंतज़ार कर रहे थे कि कब दूसरी बहु आए और वो अलग घर में चले जाएं। वो अपनी ज़िंदगी में शांति चाहते थे। माँ के सख्त स्वभाव के कारण उन्हें लगता था कि सारी ज़िन्दगी डर के जीने से अच्छा है कि अलग रह के दूर रहकर अच्छी ज़िन्दगी जी जाए। बात सही थी। पर कोई भी सौ प्रतिशत गलत नहीं होता। कहीं न कहीं हम भी कुछ हद तक गलत होते हैं। पर हमको दूसरे की गलती जल्दी दिखाई देती है। सासु माँ और जेठ, जेठानी के साथ भी कुछ ऐसा ही था। खैर नीता ससुराल तो आ गई थी पर घर का माहौल देखकर वो घबरा गई थी। एक ही घर में कोई एक दूसरे से बात नहीं करता था। ससुर जी ने नीता को पहले ही समझा दिया था कि बेटा सासु माँ की बात का बुरा मत मानना वो रूखी और गुस्से वाली ज़रूर है पर दिल की साफ है। नीता तो भरे घर में खुशियाँ पाने और बांटने आई थी। पर जेठ, जेठानी से वो ज्यादा बात नहीं कर सकती थी। सासु माँ को भी जेठानी के साथ बात करना इस लिए पसंद नहीं था कि कहीं ये नई बहु को बहका न दे और पति कहते थे कि वो माँ के साथ और मेरे साथ नाराज़ हैं तो तुम भी बात नहीं करोगी उनसे। नीता का मन करता था कि वो सहेली जैसे जेठानी से गप्पे मारे और प्यारी सी भतीजी के साथ हंसे। भतीजी से तो सब बात करते थे पर बड़ों में बोलचाल नहीं थी। बहुत ही मजबूरी में और मतलब की औपचारिक बात रह गई थी। नीता को भाग्य का तो पता चल गया था कि क्या मिला है। बस कर्म से उसे कुछ हद तक सही करने का प्रयास करना था। जेठ, जेठानी अलग रहने के लिए जाने वाले थे। नीता की शादी को छ: महीने हो गए थे। जिस दिन जाना था नीता, सास, ससुर जी और पति भी रो पड़े थे। एक हंसता, खेलता घर बिखर सा गया था। कुसूर चाहे दोनों तरफ से था थोड़ा- थोड़ा, पर सब अलग तो हो गए थे। नीता को तो समझ नहीं आ रहा था कि वो स्थिति को कैसे संभाले। सासु माँ भी बात – बात पे रो पड़ती थी। ससुर जी ने नीता को समझाया था कि सासु माँ का ख्याल अब उसे पहले से भी ज्यादा रखना है क्योंकि अब सारी ज़िम्मेदारी उसकी है। नीता न तो ससुराल का हाल अपने मायके में कह सकती थी क्योंकि नीता ससुराल की भी इज्जत रखना चाहती थी और मायके को अपनी जगह। समय बीतता गया। सासु माँ के स्वभाव में थोड़ा फर्क तो था पर फिर भी उनके साथ समझौता कर के भी रहना मुश्किल था। वो हर तरह से ये चाहती थी कि सब उनके हिसाब से हो। न नीता घर के बाहर कदम रखे, न फिज़ूल पैसे खर्च करे, न कपड़े खरीदे, न कहीं घूमने जाए। बहुत मन है तो मायके जाए वो भी मिल कर जल्दी घर वापिस भी आ जाए। कभी तो नीता को लगता शायद जेठ, जेठानी जी ने सही किया। इतनी सख्ती में और ऐसे माहौल में कौन रह सकता है। फोन पे ज्यादा बात नहीं करनी, सारे घर का काम खुद करना है। इतना बड़ा घर खुद सफाई करनी है, बर्तन भी खुद करने हैं और कपड़े भी हाथ से धोने हैं। काम वाली का काम उन्हें पसंद नहीं और कपड़े मशीन में धोने से खराब हो जाते हैं और ड्राई करने से बिजली का बिल ज्यादा आता है। कुछ साल तो नीता चुपचाप सारा काम करती रही। वो थक भी जाती फिर सासु माँ को दबाना भी, जैसे फिल्मों में होता है। पता नहीं सासु माँ को लगता था कि बहु खाली नहीं बैठनी चाहिए। जेठानी जी तो कभी नीता को हंसकर कहती भी थी कि सासु माँ बहु नहीं मजदूर लाई है जो खाली बैठें तो दिहाड़ी चढ़ती हैं। नीता ने खामोशी से अपना काम करने में ही खुद को झोंक दिया। न तो वो कोई बहस कर सकती थी न विरोध क्योंकि अभी अभी घर पहले झगड़ों से उभरा था। ससुर जी बीमार रहते थे पर नीता की वजह से थोड़ा खुश रहने लगे थे। सासु माँ भी नीता को कभी – कभी अच्छे से बुलाती थी कि ये बड़ी बहु से अच्छी है। इतना काम करती है पर उफ्फ भी नहीं करती। धीरे- धीरे नीता ने अपनी सहनशीलता और सेवा भाव से सासु में माँ के स्वभाव में थोड़ा सा बदलाव लाया था। जेठ, जेठानी भी आहिस्ता- आहिस्ता बदल गए थे। नीता के स्वभाव को देख जेठानी जी भी सासु माँ से फिर से हंस कर बात करने लगी थी । फिर नीता के स्वभाव के कारण घर पर माँ और पिताजी से कभी- कभी मिलने आने लगे थे। भतीजी भी दादी, दादा जी से प्यार लगाती थी। नीता के पति भी थोड़े से बदले थे। घर का माहौल हल्का- हल्का बदल गया था। फिर से त्योहार पर रौनक होने लगी थी। अपने ही साथ बैठे अच्छे लगते हैं। नीता को भाग्य में तो कुछ और मिला था पर कर्म से उसने कुछ तो पाया था। सबका प्यार और सम्मान। सासु माँ भी नीता से थोड़ी प्रभावित थी और जेठ, जेठानी जी भी। आखिर उनको भी अपने रुख में नर्मी लानी पड़ी। नन्दे भी घर के थोड़े से बदले माहौल से मन ही मन खुश थीं।

— कामनी गुप्ता

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |