लेख

आज हमारा देश चुनाव की नाव पर सवार भारत और इण्डिया को लेकर लड़ता नजर आ रहा है

चलते चलते देश की सियासत आज ऐसे दो राहे पर आकर खड़ी हो गयी है जहां पर देश तो एक ही है किन्तु शब्दों के दो चेहरे हैं अपने अपने चेहरे की छाप को लेकर इन दिनों सत्ता के गलियारे में खींचा तानी जमकर मची हुयी है, एक शब्द का चेहरा है भारत, तो दूसरे शब्द का चेहरा है इण्डिया दोनों ही चेहरे अपने आपको बहुत नूरानी और तेजस्वी समझ रहे हैं, एक ओर भारत है तो दूसरी ओर इण्डिया है, भारत ओ है जो अपने साथ अजनाभवर्ष, आर्यावर्त, जम्मूद्वीप, अल्हिन्द, हिमवर्ष, भारतखण्ड और हिन्दुस्तान लिये हुये है वहीं दूसरी ओर इण्डिया है जिसे 26 राजनीतिक दलों के साथ देखा जा रहा है वैसे तो कई सदियों से अधिकारिक रूप से इण्डिया को भारत ही समझा जाता रहा है किन्तु वर्तमान में सियासी चौसर पर लगातार पिछले कुछ वर्षों से ऐसे पांसे फेंके जा रहा रहे थे कि चौसर के धुरन्धर सकुनियों ने अपने- अपने पांसे फेंक कर आज देश को ऐसी स्थिति में ले आये हैं जहां पर एक ही देश के दो नाम को आमने सामने लाकर खड़ा कर दिया है। एक ओर सत्ता पर आरूढ़ दल है तो दूसरी ओर सत्ता पर आरूढ़ होने के लिये 26 रथों पर सवार सारथी हैं, दोनों ही दल अपने-अपने फेंके गये पांसे को अचूक दांव मान रहें हैं, बस भरी सभा में फर्क इतना है कि एक दल भारत को भारत बताने वा दिखाने के लिये ताबड़तोड़ फैंसले ले रहा है तो दूसरा दल भी फैंसला लेने की क्षमता को तरास रहा है। इस देश की चौसर पर लगातर फेंके जा रहे पांसे पर पांसे को पूरा देश देख रहा है और सोंच रहा कि आखिरी दांव किसका होगा और किस के पछ में होगा ? इस शह और मात के खेल में भारत बाजी मारेगा या इण्डिया बाजी मारेगा इसका फैसला अभी वक्त के गर्भ में ही पल रहा है। लेकिन भारत और इण्डिया के बीच आज जो गहरी खांई खोद दी गयी है अब देखना यह कि कब कैसे और किस प्रकार से भरेगी ? आज जो भारत और इण्डिया के बीच उथल पुथल मची हुयी तो इसे एक बार इतिहास की कोठरी में भी झांक कर देख लिया जाये कि देश में कब ? क्या ? और कैसे हुआ।

कालिदास द्वारा रचित अभिज्ञान शकुन्तलम नामक पुस्तक के अनुसार शकुन्तला और दुष्यन्त के गंधर्व विवाह के उपरान्त जन्मा एक बालक जिसका पालन पोषण जंगलों में हुआ जिसने किशोरावस्था में ही शेर का जबडा चीर कर दांत गिनने का काम किया था और हाथियों के साथ खेलता था उस वीर साहसी युवक भरत पर जब दुष्यन्त की नजर पड़ी तो उसक बारें में जानने की इच्छा हुयी तब कण्व ऋषि द्वारा दुष्यन्त को पूरा वृतांत बताया गया तो दुष्यन्त ने भरत को अपना पुत्र मान लिया और अपने साथ हस्तिनापुर  के राजभवन में ले गये कुछ समय बाद दुष्यन्त ने भरत को राजा बना दिया राजा बनने के बाद भरत का शासन काल बहुत ही अच्छा था उस उक्त उस राज्य को अजनाभवर्ष कहा जाता था कुरूवंश के राजा विश्वामित्र के समय से ही देश का नाम अजनाभवर्ष था भरत विश्वामित्र के ही वंशज थे, भरत का शासन काल बहुत ही अच्छा था प्रजा को किसी तरह का कोई दुख नही था सभी देशवासी अपने राजा के शासन से खुश होकर अपने राजा के नाम से मिलता जुलता अपने देश का नाम भारत रख लिया था तभी से भारतवर्ष नाम की भी उत्पत्ति हुयी थी। इण्डिया शब्द ईस्टी इण्डिया कम्पनी के स्थापना के बाद प्रचलन में अधिक आया और इण्डिया की उत्पत्ति इण्डस यानी सिंधु सभ्यता से हुयी जो युनानियों की चौथी सदी ईसा पूर्व से प्रचलन में थी। भारत शब्द की जडें बहुत ही गहरी हैं जो ऐतिहासिक और संस्कृति से जुड़ी हैं इसका पता पौराणिक महाकाव्य एवं महाभारत से लगाया जा सकता है। वहीं दूसरी ओर इण्डिया शब्द सिन्धु शब्द से लिया गया जो उपमहाद्वीप के उत्तर- पश्चिम भाग से प्रवाहित होंने वाली नदी का नाम है। प्रचानी यूनानियों ने सिन्धु नदी के पार रहने वाले लोगों को एंदुई कहा जिसका अर्थ सिन्धु के लोग होता था। उसके बाद फारसियों और अरबों ने भी सिन्धु भूमि को संदर्भित करने के लिये हिन्द या हिन्दुस्तान शब्द का प्रयोग किया। यूरोपीय देश के लोगों ने इन सभी नाम को रूपान्तरित करके इण्डिया नाम रख दिया और ब्रिटिश शासन काल से यह इण्डिया नाम अधिकारिक नाम हो गया उसके बाद इण्डिया शब्द ने भारतीय संविधान में भी स्थान प्राप्त कर भारत का अधिकारिक नाम इंण्डिया हो गया था।

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी कोई यूं ही बेवफा नही होता बसीर बद्र की पंक्तियों के साथ हम दिनांक 09 दिसम्बर 1946 की पहली संविधान सभा की बैठक की ओर रूख करना चाहेंगे। वसीर बद्र की पंक्तियों का सहारा इस लिये लिया गया कि 03 जून 1947 को भारत के बिभाजन के लिये लार्ड मांउटबेटन ने एक योजना पेश की थी और डा0 भीमराव अम्बेडकर ने 04 नवम्बर 1948 को संविधान का अंतिम प्रारूप पेश किया था जिसे 09 नवम्बर 1948 तक यानी पांच दिन तक दिल्ली में पढ़ा गया था। जब सभी लोगों को पता था कि अपने भारत शब्द की जडे़ं बहुत गहरी एवं पौराणिक हैं,  वहीं दूसरी ओर भारत सोंने की चिड़िया भी कहलाता रहा है तो संविधान में इण्डिया शब्द को जबरन थोपने का काम क्यों किया गया जबकि संविधान को अंग्रेजी भाषा की मूल कांपी अपने हाथ से लिखने वाले प्रेम विहारी नारायण रायजादा तथा ड्राफ्टिंग सभा के अध्यक्ष भीमराव अम्बेडकर दोनों को भारत के शब्द का महत्व पता था फिर बाद में अधिकारिक अम्लीजामा पहनाकर तैयार कर दिया गया 26 नवम्बर 1949 से ऐसा नही कि उस समय इण्डिया के नाम से बहस नही की गयी! खूब चली परन्तु 18 सितम्बर 1949 को इण्डिया दैट इज भारत वाली बात को संविधान में स्वीकार कर ली गयी फिर 26 जनवरी 1950 को संविधान को लागू कर दिया गया।

जब संविधान लिखने से पहले लार्ड मांउटबेटन की मौजूदगी थी और लार्ड मांउटबेटन की भाषा में ही संविधान लिखा गया तो लार्ड मांउटबेटन नाम पर भी एक बार प्रकाश डाल लिया जाये, लेखक लैरी कांन्लिस दॉमिनिक लैपियर द्वारा अंग्रेजी भाषा में एक पुस्तक लिखी गयी थी जिसका नाम है आजादी आधी रात को जिसे बाद में हिन्दी में रूपान्तरित किया गया किताब के पृष्ठ सं0 140 से लेकर 148 तक में बताया गया कि मई 1947 को दिल्ली में वायसराय लार्ड मांउटबेटन की अध्यक्षता में एक बैठक बुलाई गयी थी जिसमें भारत के बटवारे वाले मुद्दे पर चर्चा की जानी थी बटवारा ऐसा था जिसमें स्याही, दवात झाडू, रेल संस्थान, विद्यालय, घोडे, हार्न से लेकर सुई धागे साबुन की बट्टियां भी शामिल थीं 03 जून 1947 को ऑल इण्डिया रेडियो दिल्ली से लार्ड मांउटबेटन ने प्रसारण जारी किया जिसमें कहा कि भारतीय भू खण्ड को दो भाग में विभाजित करने का समझौता कर लिया गया है उसके बाद फिर नेहरू हिन्दी भाषा में बोले कि समझौता हो गया इसे सभी लोग शान्ती पूर्वक स्वीकार कर लें। उसके बाद 4 जून 1947 को महात्मा गांधी इस विभाजन को रोकने के लिये वायसराय लार्ड मांउटबेटन से चर्चा करने के लिये पहुंचे जहां पर महात्मा गांधी ने कहा आप हमारा देश छोंड कर चले जाओ विभाजन अपने आप खत्म हो जायेगा महात्मा गांधी विभाजन के विरोध में थे और वायसराय महात्मा गांधी की एक भी बात मान नही रहा था इस लिये महात्मा गांधी बिना वक्त गंवाये वायसराय की सभा से निकल गये। उसके बाद वायसराय लार्ड मांउटबेटन ने एक पत्रकार सभा का अयोजन किया सभा के अंतिम दौर में एक भारतीय पत्रकार ने वायसराय से सवाल पूंछा सर जैसाकि आपने कहा कि प्रशासनिक शक्तियों की अदलाबदली जल्द होनी चाहिए तो क्या कोई तारीख आपने सोंच रखी है ? जिस पर वायसराय ने कहा हां! तो पत्रकार ने तारीख जानने का प्रयास किया ? अचानक वायसराय के मन में एक खास तारीख उभर कर आ गयी जिसका नाम था 15 अगस्त 1947 लार्ड माउण्टबेटन ने भारतीय आजादी की तारीख की घोषणा आनन फानन में कर दी पूरी दुनियां में तहलका मच गया। आजादी की तारीख सुनकर ओ भारतीय ज्योतिषी बौखला गये जिसकी समझ असीम और शक्ति अटल मानी जाती थी देश भर के ज्योतिषियों ने एक स्वर में कहा कि यह तारीख भारत के लिये ठीक नही है इसे बदल दिया जाये जहां इतने दिनों तक भारतीयों ने गुलामी झेली है एक दिन और झेल लेगा किन्तु 15 अगस्त के दिन भारत को आजाद न किया जाये नही तो देश में सब कुछ उलट पलट जायेगा देश की कोई शक्ति अपने केन्द्र पर नही रह सकेगी। असम के ज्योतिषी मदनानन्द को जैसे ही आजादी की तारीख पता चली वैसे ही ओ चिल्ला उठे ओर कहा नही यह अनर्थ है जिस पर मदनानन्द ने लार्ड माउण्टबेटन को एक पत्र लिखा और कहा कि सभी भारतीयों पर दया करों और 15 अगस्त की तारीख बदलने का अनुरोध किया और बताया कि यह तारीख भारत के लिये अभिशप्त है यदि इस दिन भारत को आजाद किया गया तो भारत में बाढ, सूखा, अकाल, खून खराबा, बटवारा, जैसी स्थिति उत्पन्न हो जायेगी फिर भी लार्ड माउण्टबेटन ने किसी की एक भी नही सुनी इस प्रकार जून में ही 15 अगस्त 1947 यानि देश को आजाद करनें की तारीख का ऐलान कर दिया था।

आज हमारा देश एक बार फिर एक नये आन्दोलन की ओर धीरे धीरे अग्रसर हो रहा है बस फर्क ये है कि बीते काल खण्ड के सभी देशवासी विदेशियों की गुलामी और उनके अत्याचार से आजिज होकर एक क्रान्तिकारी रूख एख्तियार किया था न जाने कितनों की जिन्दगी क्रान्ति की ज्वाला में जलकर राख हो गयी,  न जाने अपना देश कितनी बार लूटा गया,  न जाने अपने देश की बेशकीमती धरोहरों को कितनी बार नष्ट किया गया, विदेशियों द्वारा देश में व्यापार का लालच देकर देशवासियों को गुलाम बनाया गया सोंने की चिड़िया के नाम से विख्यात अपना देश एक बार राजनीति में बुरी तरह से फंस चुका है सत्ता की कुर्सी हांसिल करने के लिये अपने ही देश के लोग अपने ही देश में ऐसे लड़ रहे हैं मानों एक दूसरे को फिरंगी नजर आ रहे हैं चुनाव के दौरान ऐसे ऐसे दांव पैतरे लगाये जाते हैं कि उन पर अगर अमल किया जाये तो आज की शिक्षा और जागरूकता का कोई महत्व नही है चुनाव जीतने की ऐसी रेस लगी है कि रास्ते में चाहे जो आये चाहे जैसा हो बस रौंद दो,  आज हमारा देश चुनाव की नाव पर सवार होकर भारत और इण्डिया को लेकर लड़ता नजर आ रहा है वहीं देशवासी भी अपने- अपने मत का चप्पू चलाने के लिये भी तैयार नजर आ रहे हैं किसके चप्पू की रफ्तार किसको कहां पर ले जाती है ये तो पूरी तरह लहरों पर ही निर्भर करता है। फ़िलहाल अभी चुनावी सागर में समुद्री बहुत ठंडी चली रही हैं तो इण्डिया और भारत को सर्दी से बचने के लिए आगाह कर रही हैं और जरुरी सामग्री को एकत्रित करने का संकेत दे रहीं हैं

राजकुमार तिवारी (राज)

बाराबंकी उ0प्र0

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782