कविता

धर्म का चक्रव्यूह 

आडम्बर में है अम्बर कई

पाखण्ड ने किए खण्ड कई 

इन दोनों के पाटन में 

पीस गई है मानवता कई

धर्म के आवरण में

होते हैं षडयंत्र कई

धर्म के चक्रव्यूह में 

फंसी है युवा वर्ग सभी

तमाशबीन के दौर में

होते हैं तमाशे कई 

नेताओं के डुगडुगी पर

बन जाते हैं बन्दर सभी 

हम चांद पर जाने का जश्न

मना रहे हैं बड़े जोर से 

लेकिन धरती की तबाही 

हमें दिखती ही नहीं

क्या करें हम अपनी मूढ़ता का ?

पढ़-लिख कर इकठ्ठा कर रहे

अपनी ही तबाही के उपकरण कई

अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दे

विकसित कर ली हमने तकनीक कई

लेकिन स्मार्ट फ़ोन का उपयोग कर 

यहां हो गए हैं मूर्ख सभी 

विघटन को संगठन दिखा

सोसल होने का अभिनय करें 

उच्छश्रृखलता को फैशन बता

करते हैं अपने मूल्यों का नाश 

अपनी संस्कृति की अवहेलना कर

विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण कर

कहीं के नहीं रहे हम

—  विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P