कविता

पितृपक्ष की विडंबना

यही आज की विडंबना हैजिसके दोषी हम आप भी हैं,गंगा में खड़े होकर,हाथ में गंगा जल लेकर भी यदि इससे इंकार करते हैंतो भी निश्चित है कि हम आप झूठ बोलते हैं,झूठों के सबसे बड़े सरदार हैं।अपवादों को छोड़ दीजिएतो सच मुंह बाये सबके सामने खड़ा हैजीते जी जिनकी कभी न सेवा करते हैंमर जाने पर उनकी पूजा करश्रवण कुमार की श्रेणी में खुद को खड़ा करने कासबसे बड़ा दिखावा करते,ऐसा करके हम खुद को ही गुमराह करतेआज जिन पुरखों के लिए खाई खोदते हैं हमवो उनके लिए नहीं अपने लिएउससे गहरी खाई की नींव खुद से खोदने का श्री गणेश हम ही कर रहे हैं,अपनी औलादों के सामने अपनी नजीर बड़ी बेशर्मी से हम आप खुद पेश कर रहे हैं।आप तो अपने पुरखों की पूजामरने के बाद कर तो रहे हैं,दुनिया समाज के डर से ही सहीदिखावा ही सही कुछ कर तो रहे हैं।पर आज की औलादें अब दुनिया समाज की चिंता कहां करती हैं।जीते जी जो कर दे रही हैंवो भी हमारा आपका सौभाग्य हैवरना मरने के बाद वे कुछ न करेंगीहमारी आपकी मौत पर यदि ओलादेंअंतिम संस्कार कर दें तो यह भीहमारी आपकी खुशकिस्मती होगी।बाकी आजकल की औलादों से किसी भी तरह की उम्मीदेंदिवास्वप्न सरीखी ही होगी,इसके पीछे की पृष्ठभूमि मेंआखिर हमारी आपकी भूमिका भी तोइन सबके लिए सबसे बड़ी होगी।

यही आज की विडंबना है

जिसके दोषी हम आप भी हैं,

गंगा में खड़े होकर,

हाथ में गंगा जल लेकर भी 

यदि इससे इंकार करते हैं

तो भी निश्चित है कि हम आप झूठ बोलते हैं,

झूठों के सबसे बड़े सरदार हैं।

अपवादों को छोड़ दीजिए

तो सच मुंह बाये सबके सामने खड़ा है

जीते जी जिनकी कभी न सेवा करते हैं

मर जाने पर उनकी पूजा कर

श्रवण कुमार की श्रेणी में खुद को खड़ा करने का

सबसे बड़ा दिखावा करते,

ऐसा करके हम खुद को ही गुमराह करते

आज जिन पुरखों के लिए खाई खोदते हैं हम

वो उनके लिए नहीं अपने लिए

उससे गहरी खाई की नींव खुद से 

खोदने का श्री गणेश हम ही कर रहे हैं,

अपनी औलादों के सामने अपनी नजीर 

बड़ी बेशर्मी से हम आप खुद पेश कर रहे हैं।

आप तो अपने पुरखों की पूजा

मरने के बाद कर तो रहे हैं,

दुनिया समाज के डर से ही सही

दिखावा ही सही कुछ कर तो रहे हैं।

पर आज की औलादें अब 

दुनिया समाज की चिंता कहां करती हैं।

जीते जी जो कर दे रही हैं

वो भी हमारा आपका सौभाग्य है

वरना मरने के बाद वे कुछ न करेंगी

हमारी आपकी मौत पर यदि ओलादें

अंतिम संस्कार कर दें तो यह भी

हमारी आपकी खुशकिस्मती होगी।

बाकी आजकल की औलादों से 

किसी भी तरह की उम्मीदें

दिवास्वप्न सरीखी ही होगी,

इसके पीछे की पृष्ठभूमि में

आखिर हमारी आपकी भूमिका भी तो

इन सबके लिए सबसे बड़ी होगी। 

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921