कविता

यमराज का निर्जल उपवास

अभी अभी अचानक यमराज से मुलाकात हो गई

दुआ सलाम के बाद थोड़ी बात हो गई,

मैंने पूछा कहाँ भटक रहे हो?

आजकल नवरात्रि चल रहा है

तब भी चैन से नहीं बैठ पा रहे हो

कुछ पूजा पाठ, मां का ध्यान शायद नहीं कर रहे हो।

यमराज हाथ जोड़कर बोला

प्रभु जी!आपका आरोप गलत है

आज तो आपका विचार एकदम निरर्थक है।

मैं भी आदिशक्ति का भक्त हूं

पूजा पाठ का ज्ञान तो नहीं है

फिर भी निर्जल उपवास करता हूँ।

मैं आडंबर नहीं करता पर मन साफ रखता हूँ

नियम धर्म का पालन तो पूरे साल करता हूं

हाँ! मंदिर में जाकर शीष झुकाना

सिर्फ नवरात्रि में ही करता हूं

पर अपना कर्म पूरी निष्ठा लगन ईमानदारी से करता  हूँ

अनीति और भ्रष्टाचार से कोसों दूर रहता हूँ

हिंसा से दूर दूर तक रिश्ता नहीं रखता हूँ

सांप्रदायिक सौहार्द बनाए रखने का 

हर संभव प्रयास करता हूँ।

जाति धर्म का भेद मुझे समझ में नहीं आया

सबसे सम व्यवहार का जन्मजात गुण पाया है,

पर आपकी धरती की दशा देख

मन बहुत अकुलाता है।

आवरण ओढ़कर भरमाना मुझे नहीं आता है,

मातृशक्तियों का सम्मान करना मुझे खूब आता है

अच्छा है आपकी वोटर लिस्ट में

मेरा नाम नहीं आता है।

आप मुझे माफ कीजिए

आजकल धरती पर जो कुछ हो रहा है

वो मुझे बिल्कुल नहीं सुहाता है,

कमसे कम पूजा पाठ भक्ति की आड़ में

जगत जननी को तो मैं नहीं भरमाता हूँ

वैमनस्यता, सांप्रदायिकता फैलाने का दोषी तो नहीं हूँ

माँ, बहन, बेटियों को मुझसे डर तो नहीं लगता

सबसे सीधा सरल सहज है मेरा रिश्ता।

अज्ञानी, मूढ़, बेवकूफ ही सही

हर किसी से नजरें मिलाकर बात तो करता हूँ,

क्योंकि नजर चुराने जैसा कोई काम नहीं करता हूँ।

आपको सब पता है मैं कोई फरिश्ता नहीं हूं

यमराज हूँ तो डंके की चोट पर 

खुद को यमराज ही कहता हूँ

साधू बन शैतानी के काम नहीं करता हूँ,

मैं बहुत खुश हूँ

कमसे कम अपनी माँ ही नहीं

किसी भी माँ का अपमान तो नहीं करता,

खून के आंसू नहीं रुलाता,उनकी कोख नहीं लजाता

हर नारी में माँ का स्वरूप देखता हूँ

पूजा पाठ में विश्वास नहीं करता

पर जगत जननी को भी अपनी माँ ही मानता हूँ।

बस एक अवगुण आ गया है मुझमें

आपकी दुनिया के रंग में रंग गया हूँ,

अब मैं भी नौ दिनों का 

निर्जल उपवास करने लग गया हूँ,

पर आप भ्रमित न होइए सरकार

इसके लिए भी आदिशक्ति से मिलकर 

पहले अनुमति ले चुका हूँ।

अब आप भी चलिए पूजा पाठ निपटाइए

और मुझे भी अपनी ड्यूटी पर जाने दीजिए

अपना स्नेह आशीर्वाद यूं ही बनाए रखिए

पर अपनी दुनिया के चोंचलों में मुझे न फँसाइए। 

*सुधीर श्रीवास्तव

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