कहानी

कहानी – सिसकती संध्या

चंडीगढ़ के एक ओल्ड एज होम में मास्टर प्रभात को अपनी जिंदगी की शाम के यह अंधेरे गुमनाम दिन काटते हुए 6 महीने गुजर गए थे। यह 6 महीने उसे 6 सालों से भी ज्यादा लग रहे थे ।चारदीवारी के भीतर घुटती सांसो और रुंधते गले को संभाले हर दिन उसे युग बराबर लग रहा था ।  जब भी रोने को मन करता वह दरवाजा बंद करके जी भर कर रो लेता ।आंसुओं का सैलाब जब गुजर जाता तोएक थके हारे राही की तरह अपनी टूटी कश्ती की पतवार को बगल में रख किनारे पर आकर खड़ा हो जाता जैसे खामोश नदी की बगल में खड़ा कोई थका हारा नाविक । 

आज कुछ तबीयत ठीक नहीं थी ।सुबह से  थोड़ा-थोड़ा बुखार था वहां तैनात सेवादार नंदु ने उन्हें दिखाने के लिए डॉक्टर को बुलाया था । डॉक्टर ने दवाई देकर उन्हें आराम करने की सलाह दी थी और चले गए थे। दुआएं खा लेने के बाद भी  उसकी तबीयत ठीक नहीं हुई थी ।शरीर बुखार से अब भी तप रहा था ।आजमास्टर प्रभात इस संध्या को कुछ अधिक ही बेचैन हो गए थे । सूने सूने कमरे को देखते देखते न जाने कब  वह अतीत की स्मृतियों में खो गए पता ही नहीं चला।

 बचपन के वे दिन जब एक आकस्मिक दुर्घटना में उसके बापू इस संसार को जवानी में ही छोड़कर चले गए और जवान मां के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा । उसने अपने बेटे के लिए खुद को संभाला और लोगों के कपड़े सिल कर घर का निर्वाहन व उसकी पढ़ाई लिखाई का खर्चा चलाया ।पढ़ लिख कर जब वह अध्यापक लग  गया तो सुजाता से उसका विवाह मां ने बड़ी धूमधाम से किया। मुरझाए हुए चमन में फिर से बसंत की बहार आ गई हो जैसे ।मां का चेहरा एक बार फिर खिल उठा था।

 समय की रफ्तार  कितनी तेज होती है उसे पता ही नहीं चला।  कब उसके तीनों बच्चे पढ़ने की स्टेज तक आ गए ।अब बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए उसे घर छोड़ना पड़ा ।और उसने अपना तबादला शहर के पास के स्कूल में करवा लिया। यहां से वह रोज आ जा सकता था  । वही  किराए के मकान में उसका परिवार चलने लगा । मां घर में अकेली छूट गई ।कभी-कभी वह मां से मिलने जाता आता रहा । परंतु धीरे धीरे उसके पास मां के लिए भी समय कम पड़ने लग पड़ा था । अधिकतम समय उसे बच्चों को देना पड़ रहा था । और एक दिन घर से मां के स्वर्गवास की  आ गई थी ।

कुछ दिन मां के लिए मातम तो मनाया परंतु परिवार की तरक्की के लिए बच्चों के भविष्य के लिए फिर से जुट गया मां भूलती चली गई बड़े होते बच्चों के लिए बड़े सपनों की दीवारों में मां कहां दफन हो गई उसे भी पता ना चला फिर एक दिन उसके आंगन में खुशियों की बहार आई उसके आंगन के फूलों पर महक आ गई थी उसका बड़ा लड़का मेडिकल परीक्षा में एमबीबीएस के लिए सेलेक्ट हो गया दूसरा लड़का भी कुछ समय बाद इंजीनियरिंग में सिलेक्ट हो गया घर में फिर खुशियां मनाई गई दोनों बच्चों के भविष्य की नीम रख ली गई थी इस कारण वह अब निश्चिंत हो गया था छोटी बेटी जो अभी पढ़ रही थी छोटी क्लास में उसकी चिंता बकी थी समय मानव पंख लगा कर उड़ता रहा और पता ही नहीं चला की समय की इस तेज गति में कितना कुछ बंता जुड़ता टूटता गया दोनों बच्चे अपनी अपनी पढ़ाई करके सेटल हो गए एक को पुणे में डॉक्टर की नौकरी मिल गई और दूसरा इंजीनियर बंद कर किसी मल्टीनेशनल कंपनी में अमेरिका चला गया बेटी ने भी अब तक पीएचडी कर ली थी और मैं स्वयं भी मास्टर से प्रमोट होकर शिक्षा अधिकारी बन गया था उसे लगा ईश्वर ने सारी खुशियां उसके झोली में डाल दिए हैं  अब चिंता थी तो बेटी के सेटल होने की खैर अपनी हैसियत का इस्तेमाल करते हुए उसने बेटी को भी एक कॉलेज में अस्थाई प्रोफेसर लगवा ही दिया तीनों बच्चे जब सेटल हो गए तो उसकी खुशी का  कोई ठिकाना ना था बेटों ने अपने अपने हिसाब से अपने साथी भी चुन लिए थे डॉ बेटे की बहू भी डॉ थी और इंजीनियर की इंजीनियर एक अमेरिका में सेटल हो गया तो दूसरा पुणे में बेटी ने भी कॉलेज के किसी प्रोफेसर को पसंद किया तो उसकी शादी बड़ी धूमधाम से करवा दी समय ने करवट बदली वे रिटायर होकर घर आ गया परिंदों की तरह बच्चे तो दूर देश उड़ गए थे घर में अब बुजुर्ग दंपत्ति थे किसी के पास अब आने का समय नहीं था जिंदगी की भाग दौड़ में वह सब  अपने मां बाप का योगदान भूलते चले गए थे चौथ व्रत इनका चौथ भर तिनका तिनका जुटाकर विधि वह भी अपने न्यूड के निर्माण में जुट गए थे अब उनकी नजर अपने बच्चों पर थी बच्चों के भविष्य को सवारने के लिए वह भी दिलों जान से जुट गए थे बूढ़ों का भोज उठाने में वे अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते थे वह भी उसी की तरह जिंदगी की रेस में सबसे आगे दौड़ना चाहते थे और इसी दौड़ में सब कुछ पीछे चोट गया था अचानक पत्नी कहती है तबीयत खराब हो गई बच्चों को उसके बीमार होने की सूचना दी गई परंतु बच्चों के पास शायद पर्याप्त समय नहीं था  डॉक्टर घर आकर मां का हाल-चाल जाना और फिर अपने साथ उसे पूना ले गया परंतु कुछ दिनों के बाद उसकी तबीयत ठीक होने के बजाय और बिगड़ गई और फिर वह उसे अपने शहर ले आए अब तक सारा परिवार इकट्ठा हो गया था और सुजाता  छोड़कर चली गई उसके जाते ही प्रभात के जीवन में फिर से अंधियारा गिराया उदासियों ने उसके चेहरे पर अपना देरा जमा लिया मां का क्रिया कर्म करने के बाद सभी बेटे बहुएं वाह बेटी दमाद वापस चले गए और अपने अपने परिवार में रंगे मास्टर प्रभात अपने घर में नितांत अकेला रह गया कभी कबार बेटियों से अपने यहां तो बुलाते परंतु उसे टिकट से लेकर सारा खर्चा तो स्वयं वहन करना पड़ता यह सब उसकी टेंशन से ही तो होता था अतः वह वहां बेटों के पास जाने के बजाय अपने घर में रहना ज्यादा ठीक समझता यहां रहते हुए अपने श्रीमान की स्वाभिमान की रक्षा भी कर पाता बेटों बहुओं की आंख पहचानने से तो वह यहां नितांत अकेला भी स्वयं को बेहतर समझता भरा पूरा परिवार होने के बावजूद नितांत अकेलापन शायद प्रभात के इससे नियति ने लिख दिया था उसे लगता वह भी तो जीवन की संध्या में मां को अकेला गांव छोड़कर शहर भाग आया था अपने इन बच्चों के बड़े-बड़े सपने लेकर  शहर मां ने पीछे जो समय मेरी तरह कांटा होगा आज उसे महसूस हो रहा था कभी-कभी उसे लगता शायद यह अकेलापन उसके हिस्से मां की बस दुआओं का फल है और फिर वह गुनाहगार भी तो है मां का यह सोचकर उसकी आंखें  भराई और वह आत्मग्लानि से अंदर ही अंदर टुकड़े-टुकड़े होने लगा जिस घर परिवार के लिए उसने सारी उम्र लगा दी थी वही परिवार आज उसके साथ नहीं था 6 महीने पहले ही तो बेटा रमन अमेरिका से आया था उसमें उसकी तबीयत भी तो  ठीक नहीं थी मैं चाहता था कि वह उसे अपने साथ ले जाए वहां परिवार में रहकर शायद उसकी तन्हाई थोड़ा कम हो जाए बहु बच्चों के साथ बातचीत करके उसके यह उदास पल शायद फिर से खुशी से बीतने लगे परंतु उसे तो यह  मालूम नहीं था की उसका अपना बेटा जिसके सपनों को उड़ान देने के लिए उसने क्या क्या नहीं किया वह उसे अपने साथ ना ले जाकर एक प्राय शहर के ओल्ड एज होम मैं इस तरह फेंक कर चला जाएगा यह कहकर कि पापा कुछ दिन  पापा यहां रहो फिर मैं तुम्हें अपने साथ ले जाऊंगा परंतु 6 महीने बीत गए कोई लेने तो दूर हाल तक जानने नहीं आया इससे अच्छा तो वह अपने घर अपने शहर मैं था अब तो बच्चों के फोन आने भी बंद हो गए  थे शायद उनकी व्यस्त बताएं बढ़ गई होंगी बेटे ने मुझसे घर इसलिए छुड़वा दिया कि उनकी शहर में बदनामी ना हो की बेटों ने बापू को नहीं संभाला अगर मुझे ओल्ड एज होम मैं ही रखना था तो हमारे शहर मैं भी तो था मुझे इस पराए शहर में क्यों ले आया कई प्रश्न उसके जैन में उभरते मिटते आंखें फिर से भी गाय जैसे उसे अब गहरी नींद ने जकड़ लिया तभी बाहर से नंदू ने आवाज लगाई  चाचा कैसे हो चाय लाऊं कोई उत्तर नहीं मिला तो उसने दरवाजा खटखटाया जब दरवाजे के खटखटाने पर भी कोई उत्तर ना आया तो वह अंदर आया देखा तो बुजुर्ग प्रभात बेसुध पढ़े थे उनकी सांसे शरीर को छोड़कर जा चुकी थी ओल्ड एज होम में सभी इकट्ठा हो गए उसके बेटे के दिए नंबरों पर फोन लगाए गए परंतु कोई भी नंबर नहीं चल रहा था आखिर में ओल्ड एज होम वालों ने की बुजुर्ग प्रभात का संस्कार करवा दिया और अस्थियां हरिद्वार मैं प्रवाहित करवा दी  कुछ दिनों बाद उसके बेटे का फोन आया तो ओल्ड एज होम वालों ने उसकी मृत्यु की सूचना दी दोनों भाई और बहन घर आए और प्रभात का बनाया घर बांटने  के बजाय बेचना ही बेहतर समझा सारी संपत्ति को बेचकर प्राप्त राशि को तीनों ने आपस में बांट लिया और फिर अपने अपने शहर जाकर अपने अपने परिवार में रम  गए यह भूल कर की तुम्हारी संध्या भी आने वाली है ।

— अशोक दर्द

अशोक दर्द

जन्म –तिथि - 23- 04 – 1966 माता- श्रीमती रोशनी पिता --- श्री भगत राम पत्नी –श्रीमती आशा [गृहिणी ] संतान -- पुत्री डा. शबनम ठाकुर ,पुत्र इंजि. शुभम ठाकुर शिक्षा – शास्त्री , प्रभाकर ,जे बी टी ,एम ए [हिंदी ] बी एड भाषा ज्ञान --- हिंदी ,अंग्रेजी ,संस्कृत व्यवसाय – राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में हिंदी अध्यापक जन्म-स्थान-गावं घट्ट (टप्पर) डा. शेरपुर ,तहसील डलहौज़ी जिला चम्बा (हि.प्र ] लेखन विधाएं –कविता , कहानी , व लघुकथा प्रकाशित कृतियाँ – अंजुरी भर शब्द [कविता संग्रह ] व लगभग बीस राष्ट्रिय काव्य संग्रहों में कविता लेखन | सम्पादन --- मेरे पहाड़ में [कविता संग्रह ] विद्यालय की पत्रिका बुरांस में सम्पादन सहयोग | प्रसारण ----दूरदर्शन शिमला व आकाशवाणी शिमला व धर्मशाला से रचना प्रसारण | सम्मान----- हिमाचल प्रदेश राज्य पत्रकार महासंघ द्वारा आयोजित अखिल भारतीय कविता प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त करने के लिए पुरस्कृत , हिमाचल प्रदेश सिमौर कला संगम द्वारा लोक साहित्य के लिए आचार्य विशिष्ठ पुरस्कार २०१४ , सामाजिक आक्रोश द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में देशभक्ति लघुकथा को द्वितीय पुरस्कार | इनके आलावा कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित | अन्य ---इरावती साहित्य एवं कला मंच बनीखेत का अध्यक्ष [मंच के द्वारा कई अन्तर्राज्यीय सम्मेलनों का आयोजन | सम्प्रति पता –अशोक ‘दर्द’ प्रवास कुटीर,गावं व डाकघर-बनीखेत तह. डलहौज़ी जि. चम्बा स्थायी पता ----गाँव घट्ट डाकघर बनीखेत जिला चंबा [हिमाचल प्रदेश ] मो .09418248262 , ई मेल --- ashokdard23@gmail.com