नववर्ष बनाम हिंदू नववर्ष
पिछले कुछ वर्षों से जब भी ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार नववर्ष की तिथि आती है तो एक संदेश वायरल होने लगता है कि यह हम भारतीयों का नववर्ष नहीं है। हमारा नववर्ष तो चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होता है। हमें इसे नहीं मनाना चाहिए। अपनी बात के समर्थन में लोग राष्ट्रकवि दिनकर जी के नाम से एक कविता का भी उल्लेख करते हैं।
ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं,
है अपना ये त्यौहार नहीं।
है अपनी ये तो रीत नहीं,
है अपना ये व्यवहार नहीं।
राष्ट्रकवि रामधारीसिंह दिनकर यह कविता दिनकर जी के किस कृति का हिस्सा है या उस समय किस पत्रिका में प्रकाशित हुई थी,इस बात की जानकारी कोई उपलब्ध नहीं कराता।
निश्चित रूप से एक जनवरी को हमारे नववर्ष का आरंभ नहीं होता। हमारे नववर्ष का शुभारंभ चैत्र नवरात्रि की प्रतिपदा से होता है।उसी दिन से विक्रमी संवत् की शुरुआत हुई थी। आज संवत् 2080 चल रहा है।हमने ग्रेगेरियन कैलेंडर से 57 वर्ष पूर्व अपने पंचांग (कलैंडर)का आरंभ किया था अर्थात ज्ञान के क्षेत्र में हम दुनिया की दूसरी सभ्यताओं से अग्रणी रहे हैं, यह निर्विवाद है। आज ग्रेगेरियन कैलेंडर तो हर घर में पाया जाता है लेकिन पंचांग कितने घरों में है? क्या जो लोग अंग्रेजी नववर्ष का विरोध कर रहे हैं उनके घर में पंचांग है और उन्हें पंचांग देखना आता है? शायद नहीं। फिर ऐसे विवाद को जन्म देने का औचित्य क्या है? लोगों को तो यह भी विदित नहीं होगा कि पंचांग के पंच अंग हैं कौन-कौन से। पंचांग मुख्य रूप से 5 अवयवों का गठन होता है, अर्थात् तिथि, वार, नक्षत्र, योग एवं करण । पंचांग मुख्य रूप से सूर्य और चन्द्रमा की गति को दर्शाता है। हिन्दू धर्म में हिन्दी पंचांग के परामर्श के बिना शुभ कार्य जैसे शादी, महत्वपूर्ण कार्यक्रम, उद्घाटन आदि संपन्न नहीं होते।
पूरा विश्व एक जनवरी को नया साल मनाता है, लेकिन भारत एक ऐसा देश है, जहाँ एक जनवरी के अलावा और भी कई बार नया साल मनाया जाता है। भारत के विभिन्न राज्यों में लोग अलग-अलग समय पर अपनी संस्कृति और परंपराओं के आधार पर नया साल मनाते हैं। हिंदी कैलेंडर के अनुसार, चैत्र का महीना खत्म होते ही बैसाख का महीना शुरू हो जाता है और बंगाली समुदाय के लिए बैसाख माह का पहला दिन बहुत खास महत्व रखता है। इस दिन बंगाली समुदाय के लोग नववर्ष की शुरुआत मानते हैं।कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गुजराती लोग नए साल की शुरुआत करते हैं। यह आमतौर पर गोवर्धन पूजा के दिन मनाया जाता है। समग्रतः दृष्टिपात करने से स्पष्ट होता है कि ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार एक जनवरी को मनाया जाने वाला पाश्चात्य नववर्ष समूचे भारत तो क्या लगभग सम्पूर्ण विश्व में एक ही दिन मनाया जाता है।
आधुनिक शिक्षा पद्धति के कान्वेंट और पब्लिक स्कूलों में पढ़ी नव-पीढ़ी को ग्रेगेरियन कैलेंडर के माहों के नाम तो ज्ञात हैं लेकिन जब वह पंचांग के माहों -चैत्र,बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, सावन, भादों, आश्विन, कार्तिक, अगहन,पौष ,माघ और फाल्गुन के नाम सुनती है तो नाक-भौं सिकोड़ने लगती है। उन्हें न तो घर में बड़े-बुजुर्गों और माता-पिता के द्वारा इन माहों के विषय में बताया गया और न विद्यालयों में कभी इनके बारे में बताने की जरूरत समझी गई। अब अगर उनसे यह कहा जाए कि हमारा नववर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से प्रारंभ होता है तो वे यही कहेंगे कि तारीख बताइए।
वैसे भारतीय नववर्ष चैत्र माह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को आरंभ होता है।इसे हम एक जनवरी मान सकते हैं। इस दिन हम एक-दूसरे को अबीर-गुलाल और रंग लगाते हैं तथा एक दूसरे को गुझिया खिलाते हैं। होलिका-दहन का दिन ( फाल्गुन मास की पूर्णिमा) एक तरह से इकतीस दिसंबर की तारीख होती है। इस दिन हम होलिका-दहन के रूप में पिछले एक वर्ष की बुराइयों को जलाकर ( भुलाकर)अगले वर्ष में प्रवेश करते हैं और नए वर्ष का स्वागत हर्षोल्लास के साथ करते हैं।
आज 1 जनवरी 2024 को भारतीय पंचांग के अनुसार पौष मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि है,यह बात शायद ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार नववर्ष का विरोध करने वालों को भी नहीं पता होगी।आज आम जीवन में तिथि का प्रयोग नहीं के बराबर होता है।कुछ ग्रामीणों के मुँह से यह बात अवश्य सुनाई देती है कि हमारी बेटी या बेटे का विवाह अमुक माह की अमुक तिथि और दिन को है। तथाकथित शिक्षित एवं सुशिक्षित लोगों के द्वारा पंचांग की तिथियों का प्रयोग निमंत्रण पर दिनांक के साथ नहीं किया जाता।उल्टे सुशिक्षित लोगों के निमंत्रण पत्र तो अंग्रेजी भाषा में छपे होते हैं। निश्चित रूप से संस्कृति, संस्कार और संस्कृत को बचाने की आवश्यकता है लेकिन यह काम किसी भाषा या संस्कृति का विरोध करके पूर्ण नहीं किया जा सकता। इसके लिए नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति और संस्कारों से परिचित कराना आवश्यक है।
आज इस संचार युग में जब दुनिया सिमट कर मुट्ठी में आ गई है और भारत एक उभरते हुए बाज़ार के रूप में दुनिया के सामने है ,अनेकानेक बहुराष्ट्रीय कंपनियाँ देश में पाँव पसार रही हैं ,तब निश्चित रूप से देश की संस्कृति को अक्षुण्ण रखना हमारे लिए एक चुनौती है।यह चुनौती किसी के विरोध के रूप में स्वीकार नहीं की जा सकती।इसके लिए हमें अपने आपको अपनी जड़ों से जोड़े रखना होगा तथा अपनी संस्कृति को दिल से लगाए रखने में किसी प्रकार के हीन-भाव को दूर रखना होगा। वैसे त्यौहार हमारी जिंदगी में खुशियाँ लाते हैं और आज इस आपाधापी के भौतिकतावादी युग में जहाँ से भी खुशियाँ मिलें, हमें समेटकर अपने दामन में भर लेनी चाहिए। एक जनवरी को नया साल मनाने से हमारे खुशी के दिनों में एक दिन और जुड़ जाएगा क्योंकि हम अपना नववर्ष और अपने त्यौहार तो मनाएँगे ही साथ में एक जनवरी को न्यू ईयर भी जुड़ा रहेगा।
डाॅ बिपिन पाण्डेय
