कविता

भव्य राममंदिर बना 

परम प्रतापी अज – सुवन, दशरथ वीर महान।

उनके सुत श्रीराम जी, कौशल्या के प्राण। 

पुरियाँ सात प्रसिद्ध हैं, प्रथम अयोध्या नाम। 

रामलला खेले जहाँ, ईश्वर रूप सकाम। 

बाबर भटका पंथ से, कालचक्र को मोड़। 

अवध में मंदिर राम का, दिया क्रूर ने तोड़। 

मंदिर पर मस्जिद बनी, हुए पाँच सौ वर्ष। 

रामजन्म-भू मुक्ति हित, चला महा संघर्ष।

न्यायालय सर्वोच्च ने, जन्मभूमि की मुक्त। 

रामभक्त सब विश्व के, हुए राम से युक्त। 

मंगल बाइस जनवरी, पावन दिवस महान। 

अवधपुरी में राम की, दिव्य मूर्ति छविमान।

स्वर्ण – अक्षरों में लिखा, नव्य अवध इतिहास।

भव्य राममंदिर बना, फलित हुआ विश्वास।

राम अनादि, अनंत हैं, पावन परम अनूप ।

शुचि श्रद्धा – विश्वास का, शाश्वत दिव्य स्वरूप।

श्रीअयोध्या देवि को, शत – शत बार प्रणाम।

कण-कण पावन हो गया, जहाँ बसे श्रीराम। 

सारा जीवन राम का, बीता त्याग प्रधान। 

मर्यादा – आदर्श के, निर्मित किए विधान।

तन अवगुण की खान है, मन पापों का कूप। 

राम! मुझे भी तार दो, हे! पतितों के भूप। 

जन्म-मरण में मैं फँसा, बहुत हो चुका तंग।

कृपा करो प्रभु राम अब, रँग लो अपने रंग। 

कर्म – श्रृंखला राम की, संस्कृति का शृंगार।

मुझ पर स्नेहिल कृपा की, कर दो वृष्टि अपार ।

राम मंत्र दो वर्ण का, कर देता अघ – नाश।

‘राम राम’ जपिए सदा, क्यों हो रहे हताश।

शबरी, गिद्ध, जटायु को, मिले राम साकार।

राम नाम हनुमान ले, किया सिंधु को पार। 

खल न कोई मुझसे बड़ा, जन्मजात हूँ दुष्ट ।

राम नाम तो ले लिया, राम न होना रुष्ट। 

प्राणी, प्रकृति, पदार्थ के, वशीभूत परिवेश। 

मर्यादित हो राम सम, मानव दे संदेश।

राम नाम उच्चार से, मिले आत्मिक शांति । 

जीवन होगा राममय, मिटे मानसिक भ्रांति।

मुक्ति प्रदाता, दुखहरण, एक नाम श्रीराम। 

राम भक्ति में डूबकर, जीवन बने ललाम। 

राम नाम संजीवनी, रामकथा आदर्श। 

शबरी, केवट तर गए, पाकर पद – स्पर्श।

श्रीराम प्राकट्य से, पुलकित सकल समाज। 

रंग उड़े, दीपक जलें, साजें मंगल साज। 

अपने घर के द्वार पर, बाँधे वंदनवार। 

जयश्रीराम सुघोष से, गूँजे जय – जयकार ।

बुराइयों के सामने, नहीं झुकाएँ शीश ।

राम – धर्म पालन करें, लेकर नाम कपीश।

कृपा सिंधु श्रीराम से, बड़ा राम का नाम। 

रूप न सम्मुख आपका, बने राम से काम। 

दनुज बढ़ गए धरा पर, मानवता अति त्रस्त। 

धनुष उठाओ राम फिर, दानवता हो ध्वस्त। 

— गौरीशंकर वैश्य विनम्र

गौरीशंकर वैश्य विनम्र

117 आदिलनगर, विकासनगर लखनऊ 226022 दूरभाष 09956087585